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आनन्द प्रवचन : भाग ८
"अजी ! आप अभी ८० रुपये ही दे दीजिए । बाकी के रुपये बाद में ले जाऊँगा ।" दुकानदार ने वह सौ रुपये का नोट ग्राहक से लेकर उसे ८० रुपये दे दिये । ग्राहक शाम तक नहीं लौटा तो दुकानदार ने नोट भुनवाने के लिए गल्ले में से १०० रुपये का नोट निकाला | नोट देखते ही उसने सिर पीट लिया - "हाय ! यह तो सौ रुपये का नहीं, पैसे में बिकने वाला विज्ञापनी नोट है ।" पर अब क्या हो ? अब तो वह ठगा जा चुका था । यह आज के जनजीवन में व्याप्त माया का नमूना है ! माया : दम्भ और दिखावे के आकार में
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दम्भ वाणी-व्यवहार से अधिक सम्बन्धित है, दिखावा या प्रदर्शन व्यवहार से । दम्भ की माया आजकल विवाह शादियों या मेलों ठेलों में अधिक पाई जाती है। दुकानदार लोग भी इस प्रकार का दम्भ किया करते हैं । कई दुकानदार ग्राहक को अपना विश्वास बिठाने के लिए कहते हैं " अधिक ले सो छोरा-छोरी खाय, अधिक ले, सो गौ खाय ।" ग्राहक समझता है कि दुकानदार जब अपने बच्चों और गाय की कसम खा रहा है, तब यह मुझसे ज्यादा नहीं लेगा, मगर यह दुकानदार का शब्दछल होता है - " जो भी अधिक मुनाफा लिया जाता है, वह लड़के-लड़कियों के या गाय के खाते में जमा कर दिया जाता है, इससे बच्चों के पालन या गोपालन का खर्च तो निकल ही जाता है, ग्राहकों को विश्वास में लेकर ठगा जाता है, सो अलग। महात्मा गाँधीजी ने कहा था – “दम्भ तो सिर्फ झूठ की पोशाक है ।" इसी प्रकार अपने आपको अपनी हैसियत, बलबूते या क्षमता से अधिक दिखाकर किसी व्यक्ति से रुपये ठगना भी दम्भ है । आजकल के विवाहों में ऐसा दम्भ बहुत चलता है, दिखावा भी एक फैशन बन गया है, जिसके बल पर मनुष्य अपनी इज्जत का सौदा करता है ।
माया : कुटिलता और जटिलता के रूप में
कभी-कभी माया भयंकर रूप धारण कर लेती है, जिसे कुटिलता कहते हैं । कुटिलता के लिए मायी मानव एक असत्य को छिपाने के लिए बीसों असत्य बोलता है । कभी-कभी तो दूसरे के देखते ही देखते उसकी आँखों में मायी मनुष्य धूल झौंक देता है । अपने पापों पर ऐसा पर्दा डाल देता है कि किसी को भी उस पर संदेह करने की गुंजाइश न हो ।
एक स्त्री के दो प्रेमी थे । एक दण्डनायक था, दूसरा था - उसी दण्डनायक का पुत्र । एक दिन दण्डनायक पुत्र उस स्त्री के पास बैठा बातचीत कर रहा था, तभी उसका पिता - दण्डनायक आ गया । स्त्री ने उसके पुत्र को चट् से घर में छिपा दिया । थोड़ी देर पश्चात् उस स्त्री का पति भी आ गया । अब दण्डनायक घबराया । लेकिन मायावी स्त्री ने उससे कहा - " तुम इस दरवाजे से निकल जाओ, मैं दरवाजा खोल देती हूँ । यों दण्डनायक को निकाल दिया । स्त्री के पति ने पूछा - " दण्डनायक क्यों आया था ।" उस मायाविनी ने अपनी पैनी सूझ से उत्तर दिया – यह इसलिए आया
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