________________
३६६
आनन्द प्रवचन : भाग ८
श्वास ( ५ ) अरुचि (६) उदररोग, और (७) चक्षुवेदना । " चक्रवर्ती अपने शरीर का सौन्दर्य फीका पड़ता देखकर चिन्तन करने लगे - " अहो ! कितना असार है यह शरीर और रूप ! संसार के सारे पदार्थ क्षण-क्षण में परिवर्तनशील हैं, अनित्य हैं । मैंने प्रत्यक्ष देख लिया कि कुछ ही देर पहले जिस सौन्दर्य पर मुझे नाज था, थोड़ी देर बाद ही शरीर रोगाक्रान्त होने से वह सौन्दर्य नष्ट होने लगा । अतः रूप यौवन का अभिमान करना व्यर्थ है । यों विचार करके अपने पुत्र को राजगद्दी सौंपकर स्वयं चल पड़े कठोर चारित्र के पथ पर । इसके बाद उन्हें कभी रूप का गर्व नहीं हुआ ।
अतः रूप, सौन्दर्य यौवन या शरीर सौष्ठव का अभिमान करना व्यर्थ है । मनुष्य को विचार करना चाहिए कि उत्कृष्ट रूप-सौन्दर्य का मूल स्रोत - ब्रह्मचर्यं पालन करके अपने जीवन को सार्थक करना ही अभीष्ट है ।
आज बहनों में रूप और सौन्दर्य का अत्यधिक गर्व पाया जाता है । वे अपने सौन्दर्भ पर इठलाती हुई, नई-नई डिजाइन के कपड़ों और गहनों में सज-धज कर जाती हैं । धर्मस्थानों में भी अपने सौन्दर्य एवं वैभव का प्रदर्शन करने के लिए जेबरों से लदकर खासकर पर्वदिनों में तो विशेष सुसज्जित हो कर आती हैं । कभी-कभी तो होड़ लग जाती है, इनमें । परन्तु ये सब नाशवान् हैं, इन पर गर्व करना फिजूल है । एक कवि ने ठीक उद्बोधन किया है—
फूली फूली फिरती हो, किसका गुमान है ? झूठा अभिमान तेरा, झूठा अभिमान है ॥ ध्रुव ॥ कपड़ों को जेवरों को कहती मेरा मेरा है । श्वास बन्द हुई फिर भोली कौन तेरा 1 तेरा तो वही जो खुशी-खुशी जरीदार साड़ियों से तन पाउडर क्रीम से मुख किसको श्रृंगार रही, सब नाशवान है ॥ २ ॥ कवि ने संसार के पदार्थों की अनित्यता का कितना सुन्दर चित्रण किया है ? लाभमद के रूप में
किया दान है ॥ १ ॥ चमकाती हो । दमकाती हो ।
मनुष्य सांसारिक पदार्थों धन, विद्या, मन्त्रसिद्धि, पदप्रतिष्ठा, व्यापारवृद्धि आदि का पूर्व पुण्यवश अधिकाधिक लाभ होता देखकर गर्वित हो उठता है । अहंकार उसे प्रदर्शन करने और अपनी पूजा-प्रतिष्ठा, नामबरी एवं यशकीर्ति की कामना के लिए प्रेरित करता है । फलत: लाभ और लोभ का मेल होने से अहंकार फलताफूलता जाता है । परन्तु जिस दिन पुण्यनाश होने से सारा धन वैभव या अन्य अर्जित किया हुआ पदार्थ नष्ट हो जाता है, उस दिन उसकी आँखें खुलती हैं । तब वह हा तोबा मचाता है । इसलिए लाभ के अवसर पर गर्व न करना ही हितावह है, अन्यथा अलाभ के प्रसंग पर उसे चिन्ता, शोक, रुदन और विलाप करना पड़ेगा । उचित तो
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org