Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 390
________________ ३७६ आनन्द प्रवचन : भाग ८ " लौटते समय परिचित नाई मिल गया । उससे खेताजी ने कहा - " हजामत बनाना है, चलो बाड़ी पर ।" नाई ने कहा - " आप बाड़ी चलें, मैं अभी आता हूँ ।" खेताजी अपनी बाड़ी पर पहुँचे और खाट डालकर पीपल की ठंडी छाया में बैठे । मीठी-मीठी हवा चल रही थी । मौसम अच्छा था । वे लेट गए और थोड़ी ही देर में गहरी नींद में उनकी नाक घर्र-घर्र बोलने लगी । इधर नाई अपने घर गया । उसकी पत्नी ने कहा - "रोटी खाने तो आ गए, साग तो लाए नहीं ! रोटी किससे खाएँगे । नाई ने सोचा- ओहो ! खेताजी की बाड़ी पर उनकी हजामत करने जाना था, उन्होंने बुलाया था । अतः बहाँ हो आऊँ और दो-चार खरबूजे लेता आऊँ, जिससे रोटी खाई जा सकेगी ।” नाई खेताजी की बाड़ी पर पहुंचा। देखा तो खेताजी नींद में सोए हैं । उसकी नजर खेताजी की दाढ़ी मूछों पर पड़ी। सोचा -- " खेताजी ने कभी दाढ़ी मूछें नहीं कटवाईं । चलो, इन्हें साफ कर दूँ । उसने निकाला उस्तरा और थोड़ी ही देर में खेताजी की दाढ़ी मूछें -- जो जन्म से लेकर आज तक नहीं कटवाई थीं, सफाचट कर दीं । खेताजी नींद में ही सोते रह गए । नाई बाड़ी में से दो चार खरबूजे लेकर चला गया । थोड़ी देर बाद खेताजी उठे । आँखें खोलकर दाढ़ी मूछों पर हाथ फिराया तो पता लगा- - दाढ़ी मूछें गायब ! वे सोचने लगे -- " मैं तो दाढ़ी-मूछों वाला था, अब तो दाढ़ी मूंछें नहीं, इसलिए मैं खेतानी नहीं हूँ । यों खेताजी अपने स्वरूप को भूल गए । उन्हें एक पिछली बात याद आई - लोग कहते थे, इस पीपल के पेड़ पर भूत रहता है, तो सचमुच मैं भूत हूँ, खेताजी नहीं । इस बात का इत्मिनान करने के लिए मैं खेताजी के घर पर जाऊँ, अगर खेताजी घर पर हों तो समझ लेना चाहिए कि मैं भूत ।" इस बात का निश्चय करने के लिए वे अपने घर गए । खेताजी दाढ़ी मूछों वाले थे, पर इन खेताजी के दाढ़ी मूछें नहीं थीं । जवान से दिखते थे । इसलिए उनकी पत्नी भी यकायक उन्हें न पहचान सकी । खेताजी ने जाकर पत्नी से पूछा - "बाई ! खेताजी घर में हैं ?" अपने पति को दाढ़ी मूंछ रहित होने से न पहचान सकने के कारण बिना दाढ़ी मूंछ के एक विचित्र मनुष्य को देखकर सहसा वह बोली - "मारा पीटा, कलमुंहा यह भूत-सा कौन आ गया ?" बस, यह सुनते ही खेताजी को पक्का निश्चय हो गया कि मैं खेताजी नहीं, सचमुच भूत हूँ ।" वे अपने को भूत समझकर वहाँ से चल दिये और बाड़ी के पास, जो पीपल का पेड़ था, उस पर चढ़कर बैठ गए । तीन-चार दिन हो गए, वे खाना पीना सब भूल गए । खेताजी के मन में और भी निश्चय हो गया कि मैं मनुष्य नहीं, भूत हूं। इसलिए वे भूत के भ्रम में तमाम बातों को भूल गए । तीन-चार दिन बाद गांव के मुखियाजी को याद आया कि खेताजी से कुछ दाम लेने निकलते हैं। काफी दिन हो गए चलो आज उनसे मिलकर पैसे ले आऊँ मुखिया जी खेताजी की बाड़ी की ओर चल पड़े, रास्ते में वही नाई मिल गया । उसने पूछा - " मुखिया जी ! आज कहाँ जा रहे हैं ?" वे बोले - खेताजी की बाड़ी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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