Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 391
________________ अप्रमाद : हितैषी मित्र | ३७७ पर, उनसे पैसे लेने हैं।" नाई बोला—मैं भी इसी वास्ते वहीं जा रहा हूँ।" चलो, हम साथ ही चलें।" बाड़ी पर पहुँचकर उन्होंने सब जगह ढूंढ लिया पर खेताजी न मिले। मुखिया जी ने कहा-आज मैं उनके घर पर गया था, तो उनकी पत्नी ने कहा-"उनका तो ७-८ दिन से कोई पता नहीं। न जाने कहाँ चले गए ?" इस पर नाई तपाक से बोला-"अभी तीन-चार दिन पहले तो मैंने उन्हें इसी पेड़ की छाया में सोते देखा था । भरनींद में मैं उनकी ढाढ़ी-मूछे साफ कर गया था।" यह सुनते ही पेड़ पर बैठे खेताजी जोर से बोले - "अरे ! दाढ़ी-मूंछे तू मूंड़ गया था ? तो खेताजी यह बैठा।" यों कह कर वे पेड़ से नीचे उतरे और नाई तथा मुखिया जी से मिले। बन्धुओं ! आज अधिकांश लोग अपने आत्म-स्वरूप को खेताजी की तरह भूल जाते हैं। मोह में डूब जाना प्रमादवश भी आत्म-विस्मृति रूप प्रमाद है। - प्रमाद : असावधानी अविवेक आदि अर्थों में प्रमाद का दूसरा अर्थ है-असावधानी, गफलत, अजागृति, अविवेक, मूर्छा या होश में रहना आदि। इसी प्रकार बोलने, सोचने या किसी प्रबृत्ति को करते समय ध्यान न रखना। जब आदमी असावधानी या लापरवाही करता है तो वह कितना नुकसान कर बैठता अपनी आत्मा का ? इस विषय में पाश्चात्य विचारक Feltham (फेलदम) से विचार कितने मननीय हैं ? "Negligence is the rust of the soul, that corrodes through all her best resolves." असावधानी या लापरवाही आत्मा पर लगा हुआ जंग है, जो उसको तमाम सर्वोत्कृष्ट संकल्प के मारफत क्षीण कर देती है। जरा-सा असावधानी रूप प्रमाद किस तरह सर्वनाश कर देता है ? इस सम्बन्ध में सैकड़ों वर्ष पहले की ब्रह्मदेश की एक ऐतिहासिक घटना सुनिए ब्रह्मदेश का एक राजा अपने महल के तीसरे मंजिल की अटारी पर बैठकर शहद का शरबत पी रहा था । अचानक थोड़ी-सी बूंदें राजा की असावधानी से नीचे गिर पड़ीं । उन्हें चाटने के लिए कुछ मक्खियाँ उन पर बैठीं । मक्खियों पर छिपकली ने झपट मारी। छिपकली को देखते ही एक बिल्ली उस पर टूट पड़ी। बिल्ली के शिकार के लिए तीन-चार कुत्ते आ धमके। कुत्तों में अन्दर ही अन्दर लड़ाई होने लगी। उनका पक्ष लेने दो दरबारी पड़ौस से आ गए । दोनों पक्षों के बीच जमकर लड़ाई हुई । एक पक्ष ने सेना बुलाई और दूसरे पक्ष की ओर से सशस्त्र नागरिक मैदान में आ डटे । सारे शहर में बलवा हो गया । महल को आग लगा दी गई । इस प्रकार राजा की असावधानी (प्रमाद) से गिरी हुई शहद की कुछ बूंदों ने राज्य का सर्वनाश कर दिया । वास्तव में मानव की जरा-सी भूल भी भयंकर परिणाम लाती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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