Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 396
________________ ३८२ आनन्द प्रवचन : भाग ८ प्रमाद : होश भूल जाना मान लीजिए, एक आदमी गुस्से से आग बबूला होकर दूसरे को गाली देता है, उस समय उसे जरा भी भान नहीं रहता कि मैं किस को क्या कह रहा हूँ। परन्तु शाम को जब उसे ख्याल आता है, तब उसके पास आ कर कहता है-क्षमा करें। मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई। मैं जो नहीं कहना चाहिए था, वे शब्द कह गया।" . क्या वह आदमी क्रोध करते और गालियां देते समय होश में था ? जागृत था? अगर वह होश में होता या जागृत होता तो क्रोध ही कैसे करता या गालियाँ ही कैसे देता? जो व्यक्ति होश में जीता है, उसके जीवन में पश्चात्ताप नहीं होता, पश्चात्ताप उसी को होता है, जो होश भूल कर या अजागृत रह कर कोई गलत काम कर बैठता है। हाँ तो होश भूल कर कोई भी काम करना प्रमाद है । वह अजागृति है, असावधानी है। अधिकांश व्यक्ति कोई भी क्रिया करते हैं, उसे होशपूर्वक नहीं करते, बेहोशी में अजागृति में ही पूर्व-अभ्यासवश ऐसा हो जाता है। आप सामायिक करते हैं, प्रतिक्रमण करते हैं, या तप, जप आदि कोई भी क्रिया करते हैं, परन्तु उस क्रिया को अगर आप होशपूर्वक नहीं करते हैं, अविवेक से करते हैं, पहले से करते आए, इसलिए करते हैं, या सदा करते हैं इसलिए धड़ाधड़ पाठ बोले, अमुक चेष्टाएँ की, और बस इस प्रकार सामायिक या प्रतिक्रमण आदि क्रियाएँ करते हैं तो वह भी प्रमादवश ही कहा जाएगा। इसीलिए तो सामायिक या प्रत्येक धार्मिक आचार व तप आदि के साथ अविवेक को दोष बताया है। सामायिक के १० मन के दोषों में अविवेक पहला दोष है। अधिकांश लोग आज देखा-देखी, अन्धाधुंध, होश भूल कर या विवेक को ताक में रख कर क्रियाएँ करते हैं, वह सब प्रमाद-दोष के अन्तर्गत है । पौषध एवं सामायिक के अतिचारों (दोषों) पर ध्यान देंगे तो आपको शीघ्र पता लग जाएगा कि वीतराग प्रभु ने पहले से ही इस दोष से बचने की ओर संकेत किया है । सामाइयस्स सइ अकरणयाए । सामाइयस्स सम्म अणणुपालणयाए । सामाइयस्स अणवटिठ्यस्स करणयाए । ___सामायिक तो ले ली, पर उसकी स्मृति न रही कि मैंने कब सामायिक ली ? या मैं सामाविक व्रत में हूँ । सामायिक का सम्यक् प्रकार से पालन न किया, सामायिक में चित्त अव्यवस्थित रहा अव्यवस्थित, अनैकाग्र या चंचलवृत्ति से सामायिक की, ये तो सामायिक में प्रमाद से होने वाले दोष है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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