Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 398
________________ ३८४ आनन्द प्रवचन : भाग ८ आप लोग इस अटपटी बात को शायद नहीं समझ पाए होंगे । लो, मैं ही बता देता हूँ । सत्य अहिंसा आदि जो धर्माचरण या अन्य धार्मिक क्रियाएँ हैं, जिन्हें समस्त सांसारिक प्राणी प्रमाद युक्त अंधेरी रात में करते हैं, यानी सोये हुए करते हैं, उन्हें संयमी पुरुष जागृत रह कर करते हैं, और जिन काम भोग, विषयासक्ति, कषाय, कलह, राग-द्व ेष, मोह, मत्सर, अहंकार आदि विभावजनित क्रियाएँ करने में सर्वसाधारण प्राणी जागृत रहते हैं। यानी उनके करने में खूब ही रुचि, रस और आदर दिखाते हैं, द्रष्टा मुनिवरों के लिए वह रात्रि है, यानी वे उन अधार्मिक, वैभाविक क्रियाओं में रुचि नहीं लेते, उनके लिए वह घोर अंधेरी रात है । हाँ, तो प्रमाद का दूसरा अर्थ असावधानी या अविवेक है । इसी तरह लापरवाह भी है । अमुक धर्मक्रिया, नियम, व्रत, त्याग अच्छा है, जीवन के लिए उपयोगी है, परन्तु आपने लापरवाही कर दी। आप उन बातों को स्वार्थ और लोभवश या आदतवश करते रहे तो यह भी प्रमाद है । एक गाँव में किसानों के खेत में चूहों की संख्या बढ़ गई । वे उनकी खड़ी फसल चट करने लगे । सभी किसान चिन्तित थे । तभी एक किसान ने गेहूँ के आटे में संखिया मिला कर गुड़ की राब बनाई और पूरे खेत में वह राब फैला दी। अब था, बेचारे चूहे मीठी गन्ध से खिंचे चले आए, वे इधर राब खाते और उधर परमधाम जा पहुँचते । पास वाले घास के खेत में उस किसान के ४ कीमती बैल चर रहे थे । वे भी राब की गन्ध पाकर कढ़ाई के पास चले आए और राब चाटने लगे । बस, थोड़ी ही देर में वे वहीं गिर पड़े। किसान बैलों को तड़पते देख घबरा गया, डॉक्टर को बुलाने आदमी भेजा। डॉक्टर आया तब तक बैलों ने दम तोड़ दिया । किसान की लापरवाही एवं अविवेक के कारण चूहों को मारने का इतना पाप हुआ, और अपने कीमती बैलों को खोने का घोर पश्चात्ताप भी । इसीलिए तो प्रमाद को मृत्यु के समान कहा गया है 'पमादो मच्चुनो पद' प्रमाद एक प्रकार से मृत्यु का स्थान है । उसका सहारा लेकर मनुष्य अपना विनाश कर लेता है । प्रमाद : आलस्य वर्द्ध क इसके अतिरिक्त प्रमाद आलस्य के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है । परन्तु वह आलस्य का जनक है । प्रमाद से ही आलस्य पैदा होता है । यों तो धर्मशास्त्रों में अधर्म और पापकार्य में आलस्य, विलम्ब एवं सुषुप्ति को को अभीष्ट माना गया है । भगवती सूत्र में जयन्ती राजकुमारी के प्रश्न के उत्तर में भगवान महावीर ने बताया है, कि जो व्यक्ति धर्मात्मा है, धर्म से युक्त प्रवृत्ति करता है, धर्म जिसके जीवन में रमा हुआ है, उस व्यक्ति का सोये रहना या आलस्य में पड़े Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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