Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 392
________________ ३७८ | आनन्द प्रवचन : भाग ८ प्रमाद : मन, वचन कायाजनित प्रवृत्तियों में असावधानी इसी प्रकार अपने मन, वचन और काया से होने वाली प्रवृत्तियों में ध्यान न रखना, भी प्रमाद हैं। मन से गलत और ऊटपटांग विचार कर लेना, किसी को बहम के कारण दोषी समझ लेना, गलतफहमी से किसी अच्छे अर्थ को बुरे अर्थ में ले लेना किसी विषय में बुरा चिन्तन करना, आर्तध्यान या रौद्रध्यान करना, ये सब मानसिक प्रमाद की धाराएँ हैं। इसी प्रकार क्रोध, अभिमान, माया और लोभ से, रागद्वोष से या किसी स्वार्थ से प्रेरित होकर वचन बोलना, असत्य बोलना, द्वयर्थक या संदिग्ध शब्द बोलना, किसी को मर्मस्पर्शी शब्द बोल देना। इस प्रकार बोलने में ध्यान न रखना, वाणीजनित प्रमाद की धाराएँ हैं तथा शरीर से दुश्चेष्टा करना, किसी को हठात् मार-पीट देना, रास्ते चलते किसी कुत्ते, सांप, या बिच्छू आदि को देखते ही सहसा मार डालना, किसी पेड़ के अकारण ही पत्ते तोड़ लेना, निष्प्रयोजन फूल तोड़ लेना, निष्प्रयोजन भटकना आदि सब शारीरिक प्रमाद की धाराएँ हैं। इन तीनों प्रकार के प्रमादों से भयंकर अनर्थ होते हैं। हालांकि ये तीनों प्रकार के प्रमाद दिखने में से छोटे-से और अल्प महत्व के लगते हैं, लेकिन ये जीवन की विशुद्धि, विकास और सद्गुणवर्द्धन की दिशा में रोड़े हैं। इनसे कभी-कभी भयंकर कर्मबन्धन भी हो जाते हैं। वाचिक प्रमाद का भयंकर परिणाम _ वाचिक प्रमाद के कारण मनुष्य कितना दुष्कर्म बन्धन कर लेता है, तथा उसके फलस्वरूप कितने दुःखद परिणाम आते हैं, इसके लिए एक प्राचीन कथा मुझे याद आ रही है-- बर्द्धमानपुर निवासी सद्ध नामक गृहपति की पत्नी चन्दा थी और पुत्र था 'सर्ग' । ये पूर्वकृत कर्मों के फलस्वरूप निर्धन थे। सद्ध की मृत्यु के बाद तो स्थिति ऐसी हो गई कि रोजी और रोटी का प्रश्न भी हल होना कठिन हो गया। चन्दा उदरपूर्ति के लिए दूसरों के यहाँ चौक-बर्तन करती थी, और सर्ग मुखियाजी का ईंधन लाकर अपना गुजारा चलाता था । एक दिन पड़ौसी ईश्वर सेठ के यहाँ उनका दामाद आया हुआ था। इधर सर्ग का भी घर आने का समय हो गया था कि इसी समय चन्दा को ईश्वर सेठ ने पानी भरने के लिए बुलाया। अतः चन्दा ने यह सोचकर कि बेटा भूखा आएगा, उसके लिए छींके पर भोजन रख दिया । कुत्ते आदि घर में न घुस जायें, इसके डरसे दरवाजे के कुंडा लगाकर वह चली गई। थोड़ी ही देर में सर्ग आया। घर आते ही ईंधन रखकर पहले वह माता को ढूंढ़ने लगा। जब मां नहीं मिली, और छींके पर पड़ा हुआ भोजन उसने देखा तक नहीं इसलिए भूख-प्यास के कारण मन ही मन गुस्से से भर गया । इधर चन्दा सेठ के यहाँ पानी भर चुकी, तब भी सेठ के आदमी कार्य व्यस्त थे, इसलिए उसे कोई पारिश्रमिक नहीं दिया। चन्दा मन में खेद पाती हुई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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