________________
पाते नरक, लुब्ध लालची
२९१ ।
जहाँ मनुष्यों को सहायता या रक्षा के लिए चिल्ला-चिल्लाकर या पुकार कर बुलाया जाता है, वह नरक है ।
आजकल के कई शिक्षित लोग नरक को गप्प समझते हैं, वे कहते हैं कि लोगों को डराने के लिए कुछ बुद्धिमानों ने नरक शब्द गढ़ लिया है और जब-तब नरक का हौआ बता कर उन्हें साहस के काम करने से रोकते हैं। परन्तु नरक न होता तो इतने भयंकर पापकर्म करने वालों को, जिनको यहाँ किसी प्रकार की सजा नहीं मिली है, दूसरा लोक न हो तो सजा कहाँ मिलेगी? मनुष्य की जीवन यात्रा केवल इस लोक में ही तो समाप्त नहीं हो जाती, वह अनेक जन्मों तक चलती है, उन जन्मों की यात्रा में क्रूरकर्म करने वालों में से जिन लोगों ने भयंकर क्रूर कर्म किये हैं, उन्हें जहाँ पड़ाव करना पड़ता है, वह है नरक । नरक एक ऐसा पड़ाव है, जहाँ उन क्रूर कर्मा लोगों को अपने कुकर्मों की भयंकर सजा मिलती है। अगर ऐसा न हो तो सत्कर्म करने वाले और दुष्कर्म करने वाले दोनों का जन्म एक ही गति में होगा। फिर सत्कर्म करने और दुष्कर्म छोड़ने की प्रेरणा कैसे मिलेगी? यह तो सारी अव्यवस्था हो जाएगी और कर्मफल का सिद्धान्त ही झूठा हो जाएगा। इसलिए नरक का अस्तित्व वास्तविक है, गप्प नहीं है। जो लोग ऐसे साहस के काम करते हैं, जिनसे दूसरों की प्राण-हानि होती हो, दूसरों का दिल दहल जाता हो, दूसरों के मन में भयंकर प्रतिक्रिया उत्पन्न होती हो, अनेक जीवों का संहार होता हो; जैसे चोरी, डाका, लूट, बलात्कार, शिकार, पशुवध, मांसाहार, पंचेन्द्रियवध, युद्ध अपनी क्रूर महत्वाकांक्षाएँ, आदि सब नरक-गमन के कारणभूत साहस हैं।
सभी धर्मों में नरक को एक या दूसरे प्रकार से, अपने-अपने देश की भाषा में माना है । सभी धर्म शास्त्रों में क्रूर कर्म करने वालों के लिए नरक का विधान किया गया है।
... परन्तु जो लोग यह समझते हैं, कि नरक मिलना होगा, जब मिलेगा या नहीं भी मिले, यहाँ हम बेरोकटोक साहसिक क्रूर कर्म करते रहें, उनसे हमारा क्या बिगड़ने वाला है, यहाँ तो कोई हमें नरक नहीं दे सकता, वे लोग भी भयंकर भ्रम में हैं। जो यहाँ नरक के काम करते हैं, उन्हें भविष्य में तो नरक मिलने ही वाला है, परन्तु यहाँ भी प्रायः उन्हें नारकीय जीवन बिताना पड़ता है । उनका जीवन इतना दुःखमय,
रोग, शोक और भय से आक्रान्त हो जाता है कि उन्हें इस जीवन में ही नरक की-सी पीड़ा-असह्य यातना और वेदना मिल जाती है। धन, कोठी, कार, बंगला साधन
और सुविधाएँ होते हुए भी वे नारकीय जीवन का अनुभव करते हैं, या तो जेल में सड़-सड़ कर मरते हैं अथवा असाध्य रोग से रिस-रिस कर इस लोक से विदा होते हैं अथवा बुरी तरह से उनकी मौत होती है।
___ अतः ऐसी घातक एवं पीड़ादायक नरकस्थली इसी जन्म में तैयार हो जाती है अथवा मिल जाती है । एक पाश्चात्य विचारक कहता है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org