Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 349
________________ अहिंसा : अमृत की सरिता ३३५ दीर्घमायुः परं रूपमारोग्यं श्लाघनीयता। अहिंसायाः फलं सर्व, किमन्यत् कामदैव सा ॥ दीर्घ आयु, श्रेष्ठ रूप, नीरोगता एवं प्रशंसनीयता (प्रतिष्ठा), ये सब अहिंसा' के ही फल हैं। अधिक क्या कहें, अहिंसा सभी मनोरथों को सिद्ध करने वाली कामधेनु है । बृहस्पति स्मृति भी इसी बात का समर्थन करती है रूपमारोग्यमैश्वर्यमहिंसा फलमश्नुते । सुन्दर रूप, स्वस्थ तन-मन, और सम्पत्ति सुख-सामग्री आदि ऐश्वर्य, इन अहिंसा के फलों को अहिंसक प्राप्त करता है। निष्कर्ष यह है कि देवों (अमरों) को जो सुख, आरोग्य, रूप, ऐश्वर्य आदि प्राप्त होते हैं, वे सब अहिंसामृत का पान करने वाले मनुष्य लोक के अमरों को प्राप्त होते हैं। ये सब तथ्य अहिंसामृत से अमरत्व प्राप्त करने के रहस्य हैं। अहिंसामृत को छोड़कर और किसी अमृत का पान करने से अमरत्व प्राप्त होने में सन्देह है। स्थूल अमृत से वास्तविक अमरता नहीं जो लोग स्थूल अमृत के चक्कर में पड़कर अपने धनबल और सत्ताबल के जोर से अमृत बनवा कर उसका पान करने का उपक्रम करते हैं, वे कदापि अमर नहीं हो सकते। जब तक स्वाभाविक रूप से अहिंसा के अमृत का स्पर्श नहीं होगा, तब तक न तो सच्ची अमरता, एवरलास्ट अमरता प्राप्त होगी, और न ही देवों का अमरत्व प्राप्त होगा क्योंकि देवों को जो अमरता प्राप्त होती है, वह भी मनुष्य लोक में अहिंसामृत का सेवन करने से ही प्राप्त होती है। किन्तु जो लोग इस तथ्य को न समझ कर अपने लौकिक वैभव, ऐश्वर्य और सत्ता के बल पर केवल खरीदा हुआ अमृत-रसायनों से बना हुआ स्थूल अमृत-पीकर अमर बनने के स्वप्न देखते हैं, उनके वे स्वप्न अधूरे ही रहते हैं । प्रागैतिहासिक काल की एक घटना है । सभी प्रकार के सुख-साधन, वैभव और सत्ता से सम्पन्न एक सम्राट् था । वह अपने वैभव की नींद में इतना मस्त रहता था कि उसे पता नहीं चलता था कि कब दिन हुआ और कब रात पड़ी। एक दिन सम्राट के मन में एक विचार आया कि मृत्यु आएगी तो यह सब सुख, सम्पत्ति, वैभव, सत्ता, और ठाठबाठ छिन जाएगा । अतः कुछ न कुछ उपाय करना चाहिए।" राजा ने अपने गंवार नौकरों एवं पासवानों से पूछा तो उन्होंने कहा-'महाराज ! इसका उपाय यह है कि आप अमर बन जाइए।" ___अमर कैसे बना जाए? यह जब सम्राट ने पूछा तो उन्होंने कहा- "अमृत पान करके।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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