Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 354
________________ ३४० आनन्द प्रवचन : भाग ८ डाकुओं पर अचूक प्रभाव पड़ा। रविशंकर महाराज के अहिंसामृत ने उनके दुखते घावों पर मरहम का काम किया । उस अहिंसामृत का प्रभाव यह हुआ कि बहुत-से star ने अपना यह गलत धन्धा छोड़ दिया और सात्त्विक आजीविका से जीवन यापन करने लगे । जिसमें अहिंसा का अमृत होता है, वह शत्रुओं को अपने अहिंसा के अमृत से मित्र बना लेता है, उनकी शत्रुता को नष्ट कर देता है । प्राचीन काल में चीन देश में एक अहिंसक तथा उदार राजा राज्य करता था । एक बार इसके राज्य की जनता ने दुःखी होकर शासन के विरुद्ध बगावत कर दी । राजा के पास खबर पहुँची तो मन्त्रियों के परामर्श से विद्रोहियों को समाप्त करने का संकल्प लेकर सदलबल वे उस विद्रोही क्षेत्र में पहुँचे । सभी को विश्वास था कि राजा अभी हमें विद्रोहियों पर सशस्त्र आक्रमण करने और मौत के घाट उतारने का कहेगा । किन्तु राजा ने विद्रोही क्षेत्र में पहुँचते ही यह घोषणा करवाई - "इस प्रदेश के समस्त कष्टों को जानने के लिए स्वयं इस देश का राजा आया है । यहाँ के विद्रोह को वह स्वयं शान्त करके जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा । अतः समस्त बागियों को मेरा खुला निमन्त्रण है कि वे स्वयं आकर मुझ से मिलें । इस प्रदेश के लोगों की इस पहली गलती को मैं माफ कर दूंगा घोषणा ही सब स्त्रीपुरुष अपने कामकाज छोड़कर राजा के स्वागत के समक्ष अपना मस्तक श्रद्धा से झुका दिया । सबने प्रसन्नतापूर्वक " आप हमारे न्यायप्रिय राजा हैं, आप स्वयं अपनी प्रजा के कष्टों को दूर करने आये हैं, इसलिए हम बहुत प्रसन्न एवं नत हैं । हमारे अपराध क्षमा करें ।" सारा ही पासा पलट गया । मन्त्रियों ने जब राजा को विद्रोहियों दिलाई तो राजा ने कहा - " आप लोग स्वयं ही विद्रोही मालूम पड़ रहा है, न शत्रु । सभी प्रेम तैयार हैं। सभी ने मेरी शरण स्वीकार कर ली। ।" बस, लिए दौड़ पड़े । उनके एक स्वर से कहा को कुचल देख लो। श्रद्धा से डालने की बात याद मुझे तो अब न कोई मेरी बात मानने को से, फिर मैं इन्हें शस्त्रास्त्रों से कैसे कुचल सकता हूँ | मैंने अहिंसा के शस्त्र से इन सबकी विद्रोही भावना समाप्त कर दी हैं । यह है अहिंसामृत का अचूक प्रभाव ! अहिंसामृत ने समस्त विद्रोहियों के घाव पर इतना मधुर लेप लगा दिया कि उनका हृदय परिवर्तन हो गया । इसी प्रकार बड़े-बड़े भयंकर अपराधी, कैदी, दुष्कर्मी एवं जीवन से ऊबकर आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों को भी जब अहिंसक व्यक्ति का मधुर सम्पर्क एवं सान्निध्य मिलता है, तो वे भी अपनी दुष्टता, अपराधवृत्ति, दुष्कर्म आदि सहसा छोड़ देते हैं । ऐसे एक नहीं, हजारों उदाहरण संसार के इतिहास में मिलते हैं । ईसामसीह ने जेकस जैसे दुर्जन, दुराचारी धनिक को अपने प्रेमामृत के प्रयोग से सुधार दिया था । समाज द्वारा उत्पीड़ित एक वेश्या को ईसामसीह ने पत्थर मारने वाले लोगों को शान्त करके उनके प्रहार से बचाया और उसका जीवन बदल दिया । इसी प्रकार अहिंसा की महत्त्वपूर्ण अंग - सेवा - निःस्वार्थसेवा उन दुःसाध्य रोगियों को नहीं मिलती तो संसार के उन अशान्त और दुःखी लोगों की आज कितनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420