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आनन्द प्रवचन : भाग ८
अहंकार शत्र किस-किस रूप में आता है ?
- अहंकार मानव जीवन का बहुत बड़ा शत्रु है । वह विभिन्न रूप धारण करके मानव हृदय में आ बैठता है और मनुष्य को तंग करता है । जातिमद के रूप में
अहंकार कभी जाति-मद के रूप में आ कर मनुष्य में व्यर्थ ही जात्यभिमान पैदा कर देता है। मनुष्य जाति मद के वश होकर यह समझने लगता है कि मेरी जाति या गोत्र ही सबसे उच्च है अन्य सब नीच हैं । मैं ही सबसे बढ़कर पूज्य हूँ। मेरा सम्मान सब को करना चाहिए। जाति मद से मत्त मनुष्य दूसरी जाति वालों पर घृणा, तिरस्कार और क्रोध करता है, लोगों में उसकी निन्दा करता है। ब्राह्मणों को चारों वर्गों का नेतृत्व मिला तो उसे जात्यभिमान हो गया कि हम सबसे ऊँचे और पूज्य हैं।
मथुरानगरी के भूतपूर्व शंखराजा ने संसार विरक्त होकर मुनिदीक्षा ले ली। तपस्या के प्रभाव से उन्हें कई लब्धियाँ प्राप्त हो गईं। एक बार वे हस्तिनापुर की ओर जा रहे थे । नगर में जाने का सही रास्ता न जानने से उन्होंने सोमदेव पुरोहित से रास्ता पूछा तो उसने द्वेषवश सीधा रास्ता न बता कर व्यन्तराधिष्ठित मार्ग बता दिया, जिससे पैर जल कर राख हो जाए। पर निस्पृह मुनि तो उसी व्यन्तराधिष्ठित मार्ग से चले । व्यन्तर साधु के तप-तेज से प्रभावित होकर अपनी माया समेट कर वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया । अब रास्ता गर्म होने के बदले बिलकुल ठण्डा हो गया था। सोमदेव अपने मकान के झरोखे में खड़ा-खड़ा यह सब कौतुक देख रहा था । अतः मुनि धर्म महान् है, यह समझ कर वह मकान से नीचे उतर कर मुनि के पास आया और चरणों में गिर कर अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी। मुनिवर ने उसे धर्मोपदेश दिया, जिसे सुनकर उसकी आत्मा प्रतिबद्ध हो गई। मुनिराज से उसने दीक्षा ग्रहण कर ली। निरतिचार चारित्र । पालन करने लगा। परन्तु ब्राह्मण जाति का मद उसके संस्कारों में प्रविष्ट था, वह निकला नहीं । यदाकदा वह ब्राह्मण जाति की उच्चता और श्रेष्ठता का बखान किया करता । अन्तिम समय में इस जाति-मद की आलोचना नहीं की। पर तपस्या एवं चारित्र पालन के प्रभाव से मर कर देव हुआ। वहाँ का आयुष्य पूर्ण करके जाति-मद के प्रभाव से बंधे हुए नीचगोत्र नाम कर्म के कारण सोमदेव पुरोहित के जीव ने गंगातट निवासी बलकोट नामक चाण्डाल की पत्नी गौरी की कुक्षि से जन्म लिया। वहाँ उसका नाम रखा गया 'हरिके शबल ।'
यहाँ नीच जाति में जन्म, शरीर काला कलूटा, बेडौल अंगोपांग और अप्रिय चेहरा, मिलने का कारण पूर्व जीवन में किये हुए जाति मद का ही दुष्परिणाम था । कहा भी है
यो मन्यतेऽहमिति नास्ति परोऽधिकोऽपि । मानात् स नीचकुलमेति भवान्नेकान् ॥
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