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पाते नरक, लुब्ध लालची ३११ तरीके हैं । यश, सम्मान, परिचय का परोक्ष लाभ और धन का गबन जैसे लाभों को यदि केवल स्टेज कौशल, बाचालता, संस्थाबाजी एवं नेतागीरी के आधार पर स मोल में खरीदा जा सकता है तो उसे कौन छोड़ना चाहेगा ? चन्दा डकार जाने और हिसाब-किताब में गोलमाल करने की संस्थाओं में पूरी गुंजाइश रहती है । अधिकारियों को उसका लाभ मिलता है । सेवा क्षेत्र को कलुषित करने में सबसे विघातक प्रवृत्ति कार्यकर्ताओं की पद- लिप्सा, अधिकार- लिप्सा और सस्ती वाहवाही लूटने की हेय मनोवृत्ति ही प्रधान कारण है । लोकैषणा प्रेरित तथाकथित लोक सेवी साथियों को गिराने, उखाड़ने से लेकर हत्या कराने तक के अनेकों भ्रष्ट तरीके अपनाते हैं, अपनी तनिक सी यशोलिप्सा एवं स्वार्थलिप्सा के कारण सार्वजनिक संस्था को बदनाम कर देते हैं । राजनैतिक जीवन में तो इस तरह लोषणा प्रेरित आपाधापी, छीना झपटी, लूट खसोट चलती ही है। हजारों रजवाड़ों में ऐसे कारनामे प्राचीन काल हुए हैं।
अतः ऐषणाओं के इस नारकीय जीवन से बचा जाए, इस दृष्टि से, सावधान करने हेतु गौतम महर्षि कहते हैं
"लुद्धा महिच्छा नरयं उवेंति ।"
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