Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 342
________________ ३२८ आनन्द प्रवचन : भाग ८ व अंधा बना दिया था । अकारण ही मां और पत्नी पर क्रोध करके मैंने बहुत अन्याय किया।" इस प्रकार पश्चात्ताप करता हुआ रमण घर आया । मां के चरणों में पड़कर माफी मांगी-मां ! मुझे क्षमा करो। आज तक मैंने तुम्हारे और पत्नी के प्रति क्रोध करके बहुत अन्याय किया । मैं मूर्ख, पिशाच, क्रोधान्ध बना। मुझे संत ने दानव से मानव बना दिया। अब मैं कभी क्रोध न करूंगा। इस प्रकार पश्चात्ताप और परिताप दोनों से रमणलाल के जीवन में प्रविष्ट क्रोध के विषेले कीटाणु समाप्त हो गए। पश्चात्ताप से पहले पूर्वताप आवश्यक हमारे यहाँ निर्जरा और संवर दो तत्त्व आत्मशुद्धि के लिए बताये हैं। जीवन में क्रोधादि बिष के कीटाणु प्रविष्ट हो जाने के बाद पश्चात्ताप एवं तपश्चर्यादि प्रायश्चित्त रूप परिताप के द्वारा उन कीटाणुओं को नष्ट करके आत्म-शुद्धि करना निर्जरा है, लेकिन वे कीटाणु आयें उससे पहले ही उन्हें रोक देना-आश्रवनिरोध रूप संवर है, जिसकी अत्यन्त जरूरत है। यानी पश्चात्ताप व परिताप के बजाय पूर्वताप किया जाय तो अधिक अच्छा है। क्रोध के विषाक्त जन्तु जीवन में प्रविष्ट होने के बाद पश्चात्ताप या परिताप करके उन्हें जला देना तो उचित है, लेकिन जन्तु प्रविष्ट होने से पहले ही पूर्वताप करना-यानी जन्तुओं को आने ही न देना उससे भी बेहतर है । आत्मशुद्धि के लिए पूर्वताप करके क्रोधादि विषाक्त जन्तुओं का प्रवेश जीवन में न होने देना उत्तम तो है, पर इसकी प्रक्रिया क्या है ? यह भी सोच लेना आवश्यक है क्रोध का प्रसंग आते ही मौन हो जाना, स्थानान्तरण कर जाना, क्रोध का प्रत्युत्तर क्रोधपूर्वक न देना, क्रुद्ध के प्रति भी प्रेम और आत्मीयता का व्यवहार करना, किसी को शत्रु ही न मानना सबको मित्र मानना, मन में दूसरों के प्रति मिथ्या भ्रम, पूर्वाग्रह, द्वेष, वैर विरोध या रुचिभेद-मतभेद के कारण दुराग्रह न रखना, अपने को बहुत महान् एवं धार्मिक और दूसरों को छोटा व पापी मानने की वृत्ति भी न रखना। क्रोध के अवसर पर महामन्त्र का जाप करने लगना आदि। ये और इस प्रकार के कुछ उपाय हैं क्रोध के पूर्वताप के । ____ अमरीका का एक प्रोफेसर बहुत क्रोधी था । मित्र की सलाह से उसने अपने नौकर से कह दिया-जब भी मुझे गर्म होते देखो, तुरन्त खाली लिफाफा दिखा दिया करो।" बस, जब भी नौकर उसे क्रुद्ध होते देखता, तुरन्त खाली लिफाफा लाकर सामने रख देता। इस प्रकार करने से उसकी क्रोध करने की आदत छूट गयी। मुहम्मद साहब ने कहा- "गुस्सा आने के समय बैठ जाओ, फिर भी शान्त न हो तो लेट जाओ।" भौंकते हुए कुत्ते के ठोकर मारोगे तो वह और ज्यादा भौंकेगा। इससे बेहत्तर है कि उस पर ध्यान ही न दो, तो वह अपने आप चुप हो जायेगा । इसी तरह कोई आप पर क्रोध कर रहा हो, या गाली दे रहा हो, उस समय आप भी क्रोध करके गाली देने लगेंगे तो क्रोध का विष ज्यादा से ज्यादा फैलता जायेगा । इसकी अपेक्षा अगर आप उस समय चुप्पी साध लेंगे तो उसका जोर अपने आप ठण्डा हो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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