Book Title: Anand Pravachan Part 08
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 324
________________ ३१० आनन्द प्रवचन : भाग ८ कर एक बुढ़िया ने अपना धर्मकर्म तक छोड़ दिया था । बहुत कुछ समझाए जाने के बाद वह पुनः धर्माचरण में संलग्न हुई । अतः कामवासना को एक क्रीड़ाकोतुक मानकर खिलवाड़ एवं मनोरंजन की तरह उसका उपयोग न किया जाए, हो सके तो ब्रह्मचर्यपूर्वक जीवन बिताया जाए, जिससे स्वास्थ्य, बल, श्रम और धन का ह्रास न हो । यही पुत्रैषणा राक्षसी के पंजे से छूटने का उपाय है । सिनेमा, अश्लील चित्र, बेहूदा साहित्य, गंदे-गाने, भड़कीला शृंगार, फैशनेबल वेशभूषा, कुसंग का वातावरण वासना की आग को बुरी तरह भड़काने में लगा हुआ है, फलतः मानसिक ओज का निरन्तर क्षरण होता जा रहा है । अतः इस मानसिक व्यभिचार से बचा जाए । कामवासना की दुष्प्रवृत्ति पर अधिकाधिक अंकुश रखा जाए। तभी पुत्रैषणा से सच्चे माने में बचा जा सकता है । फिर एक बात यह भी है, अधिक सन्तान पैदा होने पर मनुष्य उन्हीं की चिन्ता में, उन्हीं के लाड़ लड़ाने में, उन्हीं के मोह में फंसा रहता है, उसे आध्यात्मिक जीवन विकास की ओर चिन्तन का जरा भी अवकाश नहीं मिल पाता । आज अधिकांश गृहस्थों की यही दशा है। बड़े-बड़े शहरों में देखेंगे तो आप को पता लगेगा कि वहाँ बच्चे और घर वालों को खिलाने-पिलाने, स्कूल भेजने, उन्हें नहलाने-धुलाने, कपड़े पहनाने आदि में ही महिलाओं का सारा दिन चला जाता है । रात को भी देर तक भोजनादि से निवृत्त होकर थक कर निद्रादेवी की गोद में जाती हैं । उन्हें आत्म-चिन्तन के लिए जरा भी अवकाश नहीं मिल पाता । कितनी महंगी पड़ती है, यह पुत्रैषणा ? लोकैषणा की हेय लालसा बिना ही कोई उत्तम काम किये, सेवा के लिए कष्ट सहन किये बिना वाहवाही एवं प्रसिद्धि लूटने, तथा बढ़ाचढ़ा कर अपनी प्रशंसा सुनने, तिकड़म बाजी से उच्च पद या सत्ता पाने की मानसिक दुर्बलता को लोकैषणा कहते हैं । अहंकारप्रदर्शन के लिए लोग अनावश्यक ठाट-बाट रचते हैं । अमीरी का रौब गांठ कर फिजूल खर्ची से बड़प्पन सिद्ध करके प्रशंसा एवं सम्मान पाने में जितना समय, धन और श्रम व्यय किया जाता है, यदि उसका चौथाई भी महानता के सम्पादन में लगता तो सच्ची उन्नति का महल खड़ा हो जाता। प्रदर्शन के आडम्बर एवं शेखी खोरी के घटाटोप को छलप्रपंच भरी विडम्बना के सिवाय और क्या कहा जाए ? विवाह शादियों में अन्धे होकर पैसे की होली जलाना, ठाट-बाट रचने में अपनी गाढ़ी कमाई फूकना, फैशन और बड़प्पन दिखाना लोकैषणा के ही हथकंडे हैं । लोकैषणा का उन्माद इतना भयंकर होता है कि सेवा क्षेत्र में आदर्श चारित्र्य, सदाचार, त्याग बलिदान की कष्ट साध्य प्रक्रिया अपनाने से कतराने वाले लोग सस्ते हथकंडे अपनाते हैं, धुंआधार भाषण देना, प्रवचन मंच पर जा बैठना, नेतागीरी का ढोंग करना, अखबारों में समाचार और फोटो छपाना, आदि सम्मान पाने के सस्ते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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