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आनन्द प्रवचन : भाग ८
सैन्य लेकर विशालानगरी पर चढ़ आया। इधर चेडा महाराजा भी अन्याय के प्रतीकारार्थ युद्ध के लिए सुसज्ज थे। उनके साथ १८ गणराजा और उनकी सेना थी। दोनों में घोर युद्ध हुआ। दोनों की सेना के एक करोड़ अस्सी लाख मनुष्य इस संग्राम में मारे गए । नतीजा क्या निकला-लोभी एवं महत्वाकांक्षी कोणिक के हाथ में न हार आया और न हाथी । न ही हल-विहल कुमार उसके हाथ में आए। हाथी तो संग्राम में मर ही गया था। हाथी के मरते ही हल-विहल कुमार विरक्त होकर भाव दीक्षित हो गए । वैभव की तृष्णा की आग में जलते रहने के सिवाय कोणिक कुछ न कर सका और फिर इतना बड़ा युद्ध करके क्रूरकर्म के कारण वह मर कर छठी नरक में गया। कितनी भयंकर वित्तषणा रूपी डाकिन है, जिसने केवल हार और हाथी पाने की महत्वाकांक्षा को लेकर एक करोड़ अस्सी लाख मनुष्यों का संहार करवा दिया, धनक्षति हुई सो अलग ।
वित्तषणा तृष्णा की बढ़ी हुई अति मात्रा है, जो अनीतिमय उपार्जन के लिए प्रोत्साहित करती है, विविध अपराध उसी के कारण होते हैं। निर्वाह के लिए उचित न्याय्य उपार्जन तक सन्तुष्ट रहा जा सके, तो श्रम, धन, बल और मनोयोग की पर्याप्त बचत हो सकती है, जिन्हें महान् प्रयोजनों में लगाकर जीवन को धन्य बनाया जा सकता है। उस बचत को लोकमंगल में उदारतापूर्वक व्यय किया जा सकता है । पर वित्तषणा मनुष्य को इन सब उज्ज्वल सम्भावनाओं से वंचित कर देती है । वित्तैषणा ग्रस्त मनुष्य के पास सब कुछ पर्याप्त होने पर भी रात-दिन धन की हायहाय लगी रहती है। उसका एक क्षण भी अशान्ति, बैचेनी, चिन्ता, और परेशानी के बिना व्यतीत नहीं होता। बेचारे न जीवन का मूल्य समझ सकते हैं, न उसका लाभ प्राप्त कर सकते हैं, वस्तुतः वे दयनीय हैं । पिशाचिनी पुत्रैषणा
पुत्रैषणा का मोटा अर्थ है-अमर्यादित या उच्छृखल रूप से सन्तानोपत्ति करने की महेच्छा। इसका आन्तरिक रूप है—पाशविक एवं अति काम-भोग की वासना । अतिकाम-भोग मानव को आध्यात्मिक जीवन से विमुख कर देते हैं। अति काम-भोग का फल अधिक सन्तान के रूप में आता है, पर काम वासनाओं में लिपटे हुए लोग सन्तान को चरित्रवान, धार्मिक, विवेकी एवं संयमी नहीं बना सकते । क्योंकि वे केवल बच्चों को लाड़ लड़ाना और झूठा प्यार करना जानते हैं । वे अतिप्यार के कारण बच्चों को आलसी, पराधीन, निरुद्यमी, निरुत्साही, दुर्व्यसनी एवं कुसंगी बना देते हैं। बुरी संगति में पड़कर उनके बच्चे सभी बुराइयों से लिप्त हो जाते हैं । वे उन्हें धर्मसंस्कार बिलकुल नहीं दे सकते।
काम विकार से ग्रस्त लोग क्षणिक सुख के लिए बिना विचारे सन्तानोत्पत्ति का महान् दायित्व अपने कन्धों पर ले बैठते हैं, किन्तु उसके वहन करने की परिपूर्ण क्षमता न होने से वे अपने लिए ही नहीं सारे समाज के लिए संकट उत्पन्न कर देते हैं।
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