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कपटी होते पर के दास
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कराई – “जो राजपुत्री को ढूँढ़कर लायेगा उसे मैं एक हजार स्वर्णमुद्राएँ दूंगा ।" यह सुनकर चन्द्र सेठ के सेवक ने राजा के पास जाकर सारी घटना सुनाई। राजा ने तापस को गिरफ्तार करवा कर मृत्युदण्ड दिया ।
इन दोनों अति-आचारों को देखकर चन्द्रसेठ विचार में पड़ गया - जिस प्रकार मैंने इन दोनों घटनाओं में आचार की अति के साथ अत्यन्तं कपट देखा, वैसे ही मेरी पत्नी में भी अति-आचार था, इसी कारण उसने पुत्र को स्तनपान नहीं कराया, और तरुण ब्राह्मण में भी अति-आचार था, क्योंकि एक तिनका उसके सिर पर पड़ गया, जिसके लिए वह अपना सिर काटने को तैयार हो गया। क्या इन दोनों अति-आचारी जनों में दम्भ और अनाचार तो नहीं है । मुझे इसकी परीक्षा करनी चाहिए । यों सोचकर चन्द्रसेठ वहाँ से माल लेकर वाराणसी पहुँचे । सब सामन तथा आदमियों ● को शहर के बाहर किसी धर्मशाला में रख कर रात को अकेला गुप्त रूप से घर आया और एक सूराख के पास चुपचाप खड़ा रहा, जहाँ से घर की सारी वस्तुएँ दिखाई दे सकें । चन्द्रसेठ ने अपनी पत्नी को ब्राह्मण के साथ निशंक काम-क्रीड़ा करते देखा । यह देखकर वह चुप न रह सका । उसने एक श्लोक का उच्चारण किया
"बालेनाचुम्बिता नारी, ब्राह्मणस्तृर्णाहंसकः । काष्ठभूतो वने पक्षी, जीवानां रक्षकोव्रती ॥ आश्चर्याणि च चत्वारि, मयाऽपि निजचक्षुषा ।
हो ततः कस्मिन्, विश्रब्धं क्रियतां मनः ? ॥"
"मैंने भी अपनी आँखों से चार आश्चर्य देखे - ( १ ) बालक को स्तनपान न कराने वाली स्त्री, (२) तिनके के लिए अपना वध करने वाला ब्राह्मण, (३) वन में काष्ठ की तरह पड़ा रहने वाला पक्षी और (४) जीवों की रक्षा करने वाला व्रती साधु । तब फिर मेरा मन किस पर विश्वास करे ?” अपने पति के वचन सुनते ही पद्मिनी अनाचार सेवन अधबिच में छोड़ कर उठी और ब्राह्मण को घर बाहर निकाला। फिर पति के स्वागतार्थ सामने आई । परन्तु चन्द्रसेठ स्त्री के कपट चरित्र को देखकर संसार से विरक्त हो गया । शुद्ध वैराग्य भावना से जैन साधु से दीक्षा ग्रहण की । चारित्र - पालन करके उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष पहुँचा । उधर उस ब्राह्मण और पद्मिनी का बुरा हाल हुआ। चाकरी करके जैसे-तैसे बड़ी मुश्किल से गुजारा चलाते थे। कारण अत्यन्त पराधीन रहती थी । ये दोनों लैला-मजनू,
वे दोनों दूसरों के यहाँ पद्मिनी तो स्त्री होने के वह काष्ठभूत पक्षी और .
वह तापस ये चारों अनन्तकाल तक जन्ममरण रूप संसार में परिभ्रमण करेंगे । कहा भी है
"जह जह वंचइ लोयं, माइल्लो कुडइय वर्चोह |
तह तह संचिणइ मलं, बंधइ भवसायरं घोरं ॥ "
- ज्यों-ज्यों मायी व्यक्ति अपने कूट-कपटयुक्त वचनों से लोगों को ठगता है,
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