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आनन्द प्रवचन : भाग ८
रूप में रचा जाता है । परन्तु जो व्यक्ति षडयंत्र के रूप में जिसके लिए कपट का प्रयोग करता है, वह व्यक्ति यदि सत्यनिष्ठ होता है तो प्रयोगकर्ता का कपट अधिक देर तक नहीं चल सकता । शीघ्र ही उसका पर्दाफाश हो जाता है ।
तथागत बुद्ध आस्वान राज्य के किसी नगर से गुजर रहे । यह स्थान उनके विरोधियों का गढ़ था । विरोधियों को जब यह पता लगा कि बुद्ध इस नगर में हैं, तब उन्होंने एक चाल चली । एक कुलटा स्त्री के पेट पर बहुत सा कपड़ा बाँधकर उसे बुद्ध के निवासस्थान पर भेजा गया । वह स्त्री जहाँ बुद्ध थे, वहाँ पहुँची और जोरजोर से चिल्लाकर कहने लगी- देखो, यह पाप इसी महात्मा का है, यह ढोंग रचाए घूम रहा है, और अब मुझे स्वीकार भी नहीं करता । बुद्ध की धर्मसभा में इससे खलबली मच गई। उनके प्रधान शिष्य आनन्द बहुत ही चिन्तित होकर कहने लगे“भगवन् ! अब क्या होगा ? बुद्ध मुस्कराकर बोले -- " वत्स ! तुम बिलकुल चिन्ता मत करो । कपट अधिक देर तक नहीं चला करता । चिरस्थायी फलने-फूलने की शक्ति केवल सत्य में है ।" इसी बीच हुआ यह कि उस स्त्री की करधनी खिसक गई, इस कारण वे बाँधे हुए सारे कपड़े खिसक कर जमीन पर आ पड़े । उस स्त्री की पोल खुल गई । वह स्वयं अपने कृत्य पर बहुत लज्जित हुई। लोग उसे मारने दौड़े । परन्तु बुद्ध ने यह कहकर उन्हें रोक दिया कि जिसकी आत्मा मर गई हो, हमरी से भी अधिक है । फिर उसे शारीरिक दण्ड देने से क्या लाभ ?
किसी पर दोषारोपण के लिए रचा हुआ कपट देर-सबेर खुल ही जाता 1 ऐसा कपट स्वयं के लिए तो दुःखदायी है ही, दूसरों के जीवन पर अपमान, बदनामी और अश्रद्धा का कीचड़ उछालता है ।
माया : मायाचार के रूप में
मायाचार एक प्रकार का दम्भ होता है, जिसे जैन शास्त्र में 'मायामृषा' भी कहा है । कपट और असत्य इन दोनों का इसमें मिश्रण होता है । इसे 'मिथ्या - चार' भी कहा जा सकता है। इसमें करना कुछ और तथा दिखाना कुछ और होता है । कथनी और करणी का इसमें स्पष्ट अन्तर होता है । गोस्वामी तुलसीदासजी ने ऐसे लोगों के लिए कहा है
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" वंचक भक्त कहाय राम के । किंकर कंचन कोह - काम के ॥ "
ऐसे व्यक्ति मुख में राम बगल में छुरी' की कहावत चरितार्थ करते हैं । भगवद्गीता में 'मिथ्याचार' की परिभाषा इस प्रकार दी गई है—
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"कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् । इन्द्रियार्थान् विमूढात्मा, मिथ्याचारः स उच्यते ॥'
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जो व्यक्ति बाहर से अपनी कर्मेन्द्रियों (हाथ, पैर, वाणी, गुदा और मूत्रेन्द्रिय)
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