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आनन्द प्रवचन : भाग ८
इसके बिना संसार का अस्तित्व टिक नहीं सकता। यही कारण है कि धर्म का लक्षण जैनाचार्य ने किया है – “यो धरत्युत्तमे सुखे ।" जो जनता को उत्तम सुख में धारण करता है, समस्त लोक का धारण-पोषण रक्षण करता है, वही धर्म है ।
जो धारण पोषण करे, सुखमय करे समाज
भारतीय संस्कृति की नींव धर्म पर टिकी हुई है । भारत के धर्मों ने मानव जीवन की प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ धर्म को श्वासोच्छ्वास की तरह जोड़ा । उनका कहना है खाना पीना, उठना, बैठना, सोना, चलना, विवाह आदि करना आदि प्रत्येक प्रवृत्ति को करने की मनाही नहीं है, परन्तु उस पर धर्म का नियंत्रण रखो, धर्म की मर्यादा को देखो। साथ ही महाभारत में चारों वर्णों के व्यावसायिक धर्म अलगअलग बताये हैं । डाक्टर, वकील, व्यापारी, किसान, मजदूर, उद्योगपति, स्वामीसेवक, पति, पत्नी, माता-पुत्र, भाई-बहन, भाई-भाई आदि पारिवारिक एवं सामाजिक क्षेत्र के सभी व्यक्तियों के नैमित्तिक धर्म अलग-अलग हो सकते हैं, परन्तु इन सबके नित्य धर्म-अहिंसा, सत्य आदि तो एक ही हैं, ये शाश्वत हैं । धर्म के इन दोनों रूपों को देखते हुए अर्थ और काम-सम्बन्धी प्रवृत्ति हो तो समाज, राष्ट्र परिवार एवं व्यक्ति का जीवन सुव्यवस्थित, सुरक्षित, सुसंस्कृत बना रह सकता है । यही धर्म चमत्कार है, जिसे धार्मिक परिवारों में देखा जा सकता है । धर्म पुरुषार्थी के लिए प्रमुख मार्गदर्शक हैं । जीवन के समस्त आदर्शों का समावेश धर्म में हो जाता है । फिर यह धर्म केवल इहलोक के सुख के लिए ही नहीं है, परलोक में भी धर्म सुखसाधनों को प्राप्त करता है । इसीलिए जैन शास्त्रों में धर्म के लिए कहा है
" इहलोग - परलोग हियाए निस्सेसाए, खेमाए, अणुगामियत्ताए भवह'
धर्म इहलोक एवं परलोक के हित के लिए, निःश्रेयस के लिए, क्षमता प्राप्ति के लिए और अनुगामित्व के लिए है ।'
पंचाध्यायी में धर्म को एक विशिष्ट आत्मशक्ति का संचालक माना है
शक्तिः पुण्यं, पुण्यफलं संपच्च, सम्पदः सुखम् । अतो हि चयनं शक्तयेतो धर्मः सुखावहः ॥
'शक्ति (नियम, त्याग, व्रताचरण आदि से प्राप्त आत्मबल) पुण्य है, पुण्य का फल वैभव है और वैभव से सुख प्राप्त होता है । इसलिए शक्ति का संचय अवश्य ही धर्म है और वह सुखावह है ।'
निष्कर्ष यह है कि अगर आपकी प्रत्येक गति - प्रगति, प्रवृत्ति में धर्म का स्पर्श बना रहेगा तो पथभ्रष्ट नहीं होंगे, इधर-उधर भटकोंगे नहीं । धर्म आपके मनमाने व्यवहार पर अंकुश है । आप किसी भी प्रवृत्ति को करते समय धर्म की अंगुलि पकड़े रहेंगे तो आपकी आत्मा की सुरक्षा भी होगी, आपके जीवन में सुखशान्ति भी ।
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