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२६० . आनन्द प्रवचन : भाग ८
सेठ गर्व के नशे में चूर हो गया । इसी नशे में चूर वह मुनि के पास आया और दर्पपूर्ण भाषा में अपने कार्यों के गीत गाने लगा।
मुनिश्री सब समझ गए, बोले-सेठ ! तू नशे में है। मेरे पास मत आ । तू रात भर सामने वाले पेड़ के नीचे बैठ, कल सुबह आना, फिर तुझ से बात करूँगा। सेठ मुनि की बात सुनकर उदास-हताश हो गया। मन्थन में पड़ गया-"जिसको सारी नगरी महादानी कह कर प्रशंसा के गीत गाती है, उसे मुनि नशेबाज कह कर दुत्कारते हैं।" आँखों में आँसू भर आए। वह खूब रोया। सोकर जब जागा तो सोचा-मुनि तो असत्य और द्वेष से परे होते हैं, उन्होंने ऐसा क्यों कहा? जरा अपनी ओर तो देखू । ओ हो ! मैंने दान से कोठार तो खाली किया, पर मान से कोठार पुनः भर लिया। दान खूब दिया, नाम भी खूब कमाया। पर सर्वस्व देकर भी मेरा गर्व न गया। यह तो सौदा हुआ। इसी अहंकार के नशे में मैं राजा भोज को अपने से ओछा समझने लगा। मेरे पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे। मुझे अपने समान कोई दिखाई न देता था। इसी अभिमान के नशे में चूर होकर मैं मुनिश्री के पास आया और उन्होंने मुझे नशे में चूर ठीक ही कहा था। मेरा ही दोष है, उन पर रोष करना व्यर्थ है । उन्होंने ऐसा कह कर मुझे जाग्रत किया है, वे मेरे उपकारी हैं। बस, सेठ सोमदत्त ने प्रातः होते ही मुनि चरणों में अपना मस्तक रख दिया । अश्रुधारा में उसका सारा गर्व गल गया। वह विनम्र और विनयी हो गया । अहंकार ने सेठ सोमदत्त के विवेक नेत्र बन्द कर दिये थे। वे अब खुल गए। अहंकारी को पुरानी स्थिति की लकीर पीटने की चिन्ता
सचमुच अहंकार के समय मनुष्य की शोचनीय स्थिति हो जाती है । पाश्चात्य तत्त्व-चिन्तक 'डिल्लन' (Dillon) कहता है
'Pride the most dangerous of all faults, proceeds from want of sense or want of thought.'
अहंकार समस्त अपराधों से ज्यादा खतरनाक होता है, क्योंकि वह ज्ञान की कमी या विचार की कमी से अग्रसर होता है।'
अहंकारी व्यक्ति ज्ञान और विवेक की कमी के कारण अपने पुराने रीतिरिवाजों की लकीर पीटता रहता है। उसे रात-दिन यही चिन्ता सताती है कि कैसे मैं अपनी पुरानी स्थिति को कायम रखू ।
एक ठाकुर साहब थे, बड़े गर्विष्ठ । अपनी सम्पन्नता के दिनों में वे बहुत ही ठाटबाट से अफीम सेवन करते थे। उनके अन्तःपुर में कई दासियाँ थीं, एक घोड़ी थी, जिस पर बैठ कर ठाकुर अफीम का नशा करते थे। दासी उनको अफीम लाकर देती, तब इस घोड़ी पर चढ़ कर उसे धीरे-धीरे चलाते और तभी अफीम का नशा चढ़ता था । कुछ वर्षों बाद ठाकुर साहब की स्थिति खराब हो गई। पुरानी जागीरी
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