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अभिमानी पछताते रहते २६७ एक दिन उस बह के पति ने कहा-आज त्यौहार है। इसलिए खीरपूड़ी बनाना।" खीर बनाना बहूजी को आता नहीं था। इसलिए दौड़ी-दौड़ी बुढ़िया के पास गई और पूछा-"मांजी ! खीर कैसे बनाई जाती है ! मांजी ने आज उपयुक्त अवसर देखकर कहा-"देख, खीर का क्या है ! इसमें चावल, चीनी, दूध तो डालना ही है, पर थोड़ी-सी हलदी, नमक और मुट्ठीभर राख अवश्य डालना, जिससे जायकेदार हो जाएगी।" बहू ने अपनी पुरानी आदत के अनुसार कहा- “यह तो मैं भी जानती हूँ।" बुढ़िया ने कहा- 'जानती हो तो बना लो।" उसने बुढ़िया के कहे अनुसार खीर बनाई । जब उसका पति आया और खीर खाने लगा तो एक दम बे-स्वाद किरकिरी लगी । उसने पूछा- “खीर बनाना किसने बताया था आज ?" "मांजी ने ही बताया था' वह सीधा मांजी के पास पहुँचा और पूछा-माताजी ! आज आपने बहू को ऐसी कैसी खीर बनाने की विधि बताई कि वह खारी और बे-स्वाद हो गई ?" बुढ़िया ने सारी स्थिति स्पष्ट की और कहा-मैं क्या करती, जब भी मैं उसे कुछ बताती हूँ तो वह अभिमानवश कहती है—यह तो मैं भी जानती हूँ। फिर भला किसके मन में उसे सिखाने की उत्सुकता होगी ? लड़का सारी स्थिति समझ गया । उसने अपनी अभिमाननी पत्नी को डांटा-"किसी से कुछ सीखना हो तो विनय और कृतज्ञता प्रकट करनी पड़ती है, तुम में यह गुण है नहीं। इसीलिए मां जी ने ऐसी खीर बनाने की विधि बता दी। कहना न होगा कि उस दिन के बाद बहूरानी ने कभी अहंकार प्रगट न किया।
झूठी शेखी बघारने पर कलई खुलने की चिन्ता अभिमानी अपनी झूठी शेखी बघारता है, परन्तु साथ ही इस बात से चिन्तित रहता है कि कहीं मेरी कलई न खुल जाए। वह जनता में एक बार उसके किसी चमत्कार से प्रतिष्ठित हो जाता है, तब वह उस प्रतिष्ठा को बरकरार रखने के लिए लोगों में झूठी शेखी बघारता है। पर उसके मन में तो दबदबा रहता है कि कहीं मेरे से सवाया मिल गया तो सारा मजा किरकिरा हो जाएगा।
___ महान् तत्त्ववेत्ता डायोजिनिस के पास एक दिन एक झूठी शेखी बघारने वाला आया और कहने लगा- "मैं बड़े-बड़े विद्वानों से मिला हूँ । घंटों तक उनसे वार्तालाप भी किया है उनकी तुलना में तुम्हारे ज्ञान का मूल्य नहीं है।' डायोजिनिस ने कहा - "भाई ! मैं भी बड़े-बड़े धनपालों से मिला हूँ। उनके साथ लम्बी चर्चाएँ भी की हैं, परन्तु इससे मैं धनवान नहीं बन सका, वैसे ही तुम अपने लिए समझ लो।"
संसार में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो अपने पूर्वजों के बढ़चढ़ कर गुणगान करते, उनके प्रशंसा-गीत गाते हैं, पर उनके पास देखा जाए तो उन पूर्वजों का शतांश भी नहीं है। एक बार जार्ज बर्नार्डशॉ किसी विदेशी साहित्यकार से मिलने गए। उन्होंने अपने देश, इतिहास और पूर्वजों की कीर्ति का बखान करना शुरू कर दिया। शॉ सुनते-सुनते ऊब गए। उन्होंने कहा-इस प्रकार पूर्वजों का वर्णन करते-करते तो
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