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कपटी होते पर के दास
धर्मप्रेमी बन्धुओ !
आज गौतमकुलक के तेरहवें जीवन सूत्र पर आपके समक्ष चर्चा की जायेगी। तेरहवाँ जीवन सूत्र इस प्रकार है
मायाविणो हंति परस्स पेसा।। मायावान् (कपटी) दूसरों के दास या गुलाम होते हैं । अर्थात् कपटयुक्त मानव जीवन में दूसरों का दास बनता है । इस सूत्र का तात्पर्य यह है कि इस जन्म में कपट करने वाले मानव आगामी जन्म में दूसरों के दास, नौकर या गुलाम बन कर जीते हैं, और पूर्वजन्म में जिस व्यक्ति ने कपट, छल, माया या वंचना की हो, उसे इस जन्म में दासता, गुलामी या चाकरी करनी पड़ती है। जहाँ माया होती है, वहाँ उसके परिणामस्वरूप दासता निश्चित है । व्यक्ति इसे चाहे या न चाहे, कपट क्रिया दम्भाचार, मायाचार, निह्नवता, कुटिलता, माया या वञ्चना के फलस्वरूप उसे दासता, गुलामी, चाकरी या नौकरी स्वीकार करनी ही पड़ती है। चाहे वह पशु-पक्षी के रूप में हो, या मानव के रूप में । माया की पहचान
प्रश्न होता है कि माया को कैसे पहचाना जाये ? माया मन के गूढ़ किले में बन्द होकर बैठ जाती है, प्रकट में तो मायाचार ही आता है। परन्तु यह बात निश्चित है मनुष्य के मन के सिंहासन पर बैठी हुई मायारानी मन से निकलकर वाणी में, तथा कायिक चेष्टा एवं व्यवहार में भी आती है, उस समय पहचान ली जाती है । एक माया को छिपाने के लिए मनुष्य कई घाट घड़ता है । कई प्रकार के मंसूबे बाँधता है, योजना बनाता है और तब दूसरों को धोखा देने, ठगने और छल-कपट द्वारा अपना विश्वास दूसरों के दिल-दिमाग में बिठाने की कोशिश करता है ।।
। यों तो मनुष्य के द्वारा की गई माया बहुत-सी बार उजागर हो जाती है। मन में छिपे हुए चोर को चतुर लोग झटपट जान जाते हैं। जानने के बाद फिर तो उसकी फजीहत होती है, उस पर से सज्जनों का विश्वास उठ जाता है । इसीलिए कविवृन्द कहता है
"फेर न है है कपट सों, जो कीजे व्यवहार । जैसे हांडी काठ की, चढ़े न दूजी बार ॥"
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