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आनन्द प्रवचन : भाग ८
बहू कुछ सीने का काम लेकर दरवाजे के बीच में बैठ गई, बुढ़िया ने आते ही गुस्से में आकर कहा-"आज यह कौन मरी है यहाँ ? तेरे घर वाले कहाँ मर गये ? वे क्यों नहीं आये? तुझे लड़ने भेजा है, तो लड़ती क्यों नहीं ?" बहू बिलकुल चुपचाप अपना काम करती रही और बुढ़िया स्वयं गुस्से में आकर जोर-जोर से बड़बड़ाती रही। जब बुढ़िया बोलते-बोलते हाँफने लगी और गश खाकर गिर पड़ी। पुत्रवधू बुढ़िया को पानी के छींटे देकर होश में लाई। कहा- "माजी ! क्या अब लड़ोगी ? देखिये न ! आपका शरीर क्रोध और कलह से आधा रह गया है, अगर आप लड़ाई और गुस्सा छोड़ दो, तो मैं आपकी सेवा कर सकती हूँ।" बुढ़िया इस बात से सहमत हो गयी। दूसरे दिन से ही उसने लड़ना और गुस्सा करना बन्द कर दिया और ठाकुर साहब से कहला दिया कि वे बारी बन्द कर दें। दूसरे दिन से फिर बुढ़िया कभी किसी के यहाँ लड़ने न गई और न ही किसी पर क्रोध किया। इस प्रकार आपने देखा होगा कि क्रोध के समय मनुष्य बेभान हो जाता है, कभी-कभी आत्म-हत्या भी कर बैठते हैं। क्रोध के मारे लड़ाई-झगड़ा और खूनखराबी की घटनाओं का कारण यही भयंकर विकार है। क्रोध के कारण मनुष्य का सारा शरीर विकृत हो जाता है। मानो कोई विकराल रूपधारी राक्षस आ गया हो।
क्रोध करने से विश्व के अशुभ परमाणुओं को मनुष्य अपनी ओर खींचता है । वे आकर्षित अशुभ परमाणु उस मनुष्य के चेहरे और शरीर पर बुरा प्रभाव डालते हैं। नीतिकार के शब्दों में क्रोध से शरीर की भयानक आकृति का चित्रण
"भ्रूभंग - भंगुरमुखो विकरालरूपो रक्त क्षणो दशनपीड़ित दन्तवासाः । त्रासं गतोऽपि मनुजो जननिन्द्यद्वषः।
क्रोधेन कम्पित तनुभुवि राक्षसो वा ॥" क्रोध के कारण भ्रकुटि टेढ़ी हो जाने से मुंह भी टेढ़ा हो जाता है, चेहरा अतीव विकराल हो जाता है, आँखें लाल हो जाती हैं, दाँतों से ओठ चबाता है, ऐसे व्यक्ति की वेशभूषा भी लोकनिन्दनीय होती है, वह क्रोध से अत्यन्त पीड़ित होता है। उसका सारा शरीर थर-थर काँपता है, मानो इस पृथ्वी पर राक्षस आ गया हो। क्रोध से मानसिक एवं आत्मिक-हानि
शरीर के अतिरिक्त क्रोध का मन पर भी जबर्दस्त प्रभाव पड़ता है। क्रोधी व्यक्ति क्षण-क्षण में मन में परितप्त होता रहता है । जरा-सा कारण पाकर बड़े अनर्थ पर उतारू हो जाता है। जब क्रोध आता है तो उसकी विवेकबुद्धि अपनी या किसी दूसरे की हानि सोचने में लुप्त हो जाती है, उसका सद्विचार तक नहीं होता। अपनी हानि पर भी उसे तरस नहीं आता। कुछ भी हो, क्रोधी किसी भी तरह, अपना
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