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आनन्द प्रवचन : भाग ८
सामान आता है। मेरे बिना स्त्री-बच्चे भूखे मर जाएँ।” सन्त ने कहा—'तुम्हारा यह मिथ्या भ्रम है । सबका अपना-अपना भाग्य होता है, उसके अनुसार उसे निर्वाह के लिए सब कुछ मिलता है। व्यर्थ का अहंकार मत करो।" बनिये ने कहा—'मुझे तो आप प्रत्यक्ष चमत्कार बताओ, तब मैं मान ।' सन्त ने बनिये को एक महीने के लिए कहीं बाहर चले जाने के लिए कहा। वह चला गया। पीछे से सन्त के एक भक्त ने हरिदास के घर जा कर उसकी पत्नी से कहा-हरिदास को जंगल में एक बाघ ने झपटकर मार डाला। बहुत बुरा हुआ।' बनियानी और बालकों ने बहुत शोक मनाया। गाँव के लोगों को पता चला तो कुछ दयालु सेठों ने महीने भर का खाने-पीने का सामान हरिदास के यहाँ भिजवा दिया। एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को, एक ने छोटे को अपने यहाँ नौकर रख लिया। एक महीने बाद जब हरिदास लौट कर सीधा सन्त के पास पहुँचा तो उन्होंने रात को एक लंगौटी पहनकर घर जाने और हाल जानने को कहा। वह गया तो सभी ने उसे भूत समझकर अपमानित करके निकाल दिया । बोले-'हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है, हम पहले से बहुत सुखी हैं।' हरिदास का अभिमान उतर गया। वह समझ गया कि मेरे बिना परिवार का काम नहीं चल सकता, यह भ्रान्ति थी। अत: सन्त के पास लौटकर उसने अपना आत्म-कल्याण करने का विचार करके सन्तजीवन स्वीकार कर लिया । कवि वृन्द भी अभिमानी की मनोवृत्ति का चित्रण करते हुए कहते हैं
"होत न कारज मो बिना, यह जु कहे सुअयान ।
जहाँ न कुक्कुट शब्द तह, होत न कहा बिहान ॥" महान दार्शनिक रोशे के मतानुसार 'जो यह सोचता है कि दुनिया के बिना मैं अपना काम चला लूंगा, वह खुद को धोखा देता है, किन्तु मेरे बिना दुनिया का काम नहीं चलता यों कहने वाला बहुत बड़े धोखे में है।' सूत्रकृतांग सूत्र में अभिमानी की दृष्टि का विश्लेषण करते हुए कहा है
'अन्न जणं पस्सति बिबभूयं' 'अभिमानी अपने अहंकार में चूर होकर दूसरों को सदैव बिम्बभूत (परछाईं के समान तुच्छ) मानता है।' रहीम कवि के शब्दों में अभिमानी की परिभाषा देखिये
"जो रहीम ओछो ब, सो अति ही इतराय ।
प्यादे सो फरजी भयो, टेढो-टेढो जाय ॥" अभिमानी प्रदर्शन का आग्रही
अभिमानी अपने सिवाय औरों को देख ही नहीं सकता, इसीलिए तो उसे शास्त्रकारों ने 'मानान्ध' कहा है। अभिमान में अन्धे व्यक्ति प्रायः अपने अधीनस्थ सेवकों से कहा करते हैं-दूर हटो, दूर हटो । परन्तु सूत्रकृतांग सूत्र की दृष्टि में
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