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क्रोधीजन सुख नहीं पाते २३६ कर आए। पर तब तक वे नरपिशाच तो भाग गये थे, सिर्फ कटी हुई लाशें बिछी पड़ी थीं। मानो क्रोध मूर्तिमान राक्षस बनकर आया हो।
इस प्रकार के सैकड़ों उदाहरण क्रोध के कारण क्रूरता पैशाचिकता के मिल सकते हैं।
निष्कर्ष यह है कि क्रोध ध्वंस का काम करता है, निर्माण या सृजन का नहीं। क्रोध में हमेशा तोड़फोड़, दंगा, मारपीट, गाली-गलौज, हाथापाई, प्रहार आदि ध्वंस के भाव निहित रहते हैं। इसलिए भगवान महावीर ने स्पष्ट कहा है
'कोहो पोइं पणासेइ' क्रोध प्रीति का नाश करता है। क्रोधी किसी का प्रेमपात्र नहीं बन सकता । क्रोधान्ध व्यक्ति क्या-क्या पाप नहीं कर डालता? यह आपने अभी-अभी सुना ही है । शास्त्र भी कहते हैं
___"कोहंधा निहणंति पुत्तं मित्तं गुरु कलत्तं च।" क्रोधान्ध व्यक्ति पुत्र, मित्र, गुरु और पत्नी को भी मार डालता है। इसी कारण प्लुटार्क ने कहा है
"क्रोध समझदारी को बाहर निकाल कर बुद्धि के दरवाजे के चटकनी लगा देता है।"
क्रोधी व्यक्ति सर्वत्र अपमानित होता है क्रोधी व्यक्ति जहाँ भी जाता है, वहाँ अपमानित होता है। उसे कोई पास बिठाना नहीं चाहता और न ही उसका कोई सत्कार करता है । आप कहीं जा रहे हों और सामने से कोई पागल कुत्ता आ रहा हो तो क्या आप गफलत में रहेंगे ? नहीं आप तुरन्त सावधान हो जाएँगे, क्योंकि पागल कुत्ता पास में जाने पर काट खाता है । इसी प्रकार क्रोध भी पागल कुत्ते के समान है । वह भी जिसको काट लेता है समझलो, वह परलोक का मेहमान होने वाला है। पागल कुत्ता तो केवल एक बार ही हैरान करता है, एक ही बार व्यक्ति उससे मर जाता है, परन्तु क्रोध रूपी पागल कुत्ता तो एक बार नहीं, एक जन्म में नहीं, जन्म-जन्म में हैरान करता है। अनेक बार नरक-तिर्यंच योनियों में भटकता है । पागल कुत्ता चोर-साहूकार को नहीं देखता, वह तो हर एक को भौंकने और काटने लगता है, इसी तरह क्रोध भी जब शरीर में डसता है तो क्रोधी आँखें बन्द कर लेता है और मुंह खोल लेता है । इसीलिए उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है
- 'अहे वयइ कोहेणं' क्रोध से आत्मा नीचे गिरती है, अधोगति में जाती है ।
वसन्तपुर के राजा कनकप्रभ का पुरोहित सोमयश था। उसके एक पुत्र था—सूर ! वह था तो चौदह विद्याओं में प्रवीण, परन्तु था बड़ा क्रोधी। आग की
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