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आनन्द प्रवचन : भाग ८
महर्षि दुर्वासा की उपस्थिति से न तो उस स्थान पर सुख-शान्ति और विश्वास का वातावरण निर्मित होता था और न ही लोग अपना अहोभाग्य समझकर उनके सम्मान
आँखें बिछाते थे । बल्कि जहाँ भी दुर्वासा ऋषि पहुँचते, वहाँ अविश्वास, भय और आतंक का वातावरण छा जाता था । लोग उनके दर्शनों से डरते थे और मनाया करते थे कि उनका पदार्पण न हो । क्योंकि वे बड़े क्रोधी थे । कल्याण कार्यों के समय अन्य ऋषियों के आगमन पर लोग जहाँ हर्ष विह्वल हो जाते थे, वहाँ दुर्वासा के आगमन पर अकल्याण की आशंका करने लगते थे ।
एक बार दुर्वासा ऋषि महाराज अम्बरीष से अकारण ही नाराज हो गये और उन्हें शाप दे दिया । अम्बरीष बड़े घबराये । उन्होंने दुर्वासा से दया की याचना की, इस पर तो दुर्वासा और क्रोधित हो उठे । अम्बरीष ने विष्णु से प्रार्थना की। उन्होंने अपना सुदर्शनचक्र छोड़ दिया । चक्र देखकर दुर्वासा बेतहाशा भागे । पर चक्र ने तब तक उनका पिण्ड न छोड़ा, जब तक उन्होंने अपने अकारण क्रोध के लिए अम्बरीष से क्षमा न माँगी । इस प्रकार दुर्वासा ऋषि को भी क्रोध - व्यसन के कारण अत्यन्त नीचा देखना पड़ा, सुख तो कोसों दूर रहा उनसे ।
क्रोध की जड़ और उत्पत्ति के कारण
यह निश्चित है कि क्रोधी व्यक्ति को संसार में कहीं सुख नहीं है । वह वाणी और व्यवहार की कटुता के कारण संसार में अपने दुश्मन बढ़ा लेता है । परन्तु मूल में, क्रोध की जड़ अज्ञान ही है । आदमी अपनी और दूसरों की स्थिति के बारे में गलत धारणा बना लेता है, तब उसे कुछ का कुछ दिखाई देता है । बेटे ने आज्ञा न मानी पिता को क्रोध आ गया। क्योंकि पिता बेटे को अपनी सम्पत्ति मानता है, अपना दास समझता है, उसे आज्ञा माननी ही चाहिए । परन्तु जब क्रिया इससे उलटी होती है, तब गुस्सा आता है । यही हाल पत्नी का है, तथा अन्य अधीनस्थ कर्मचारियों आदि का है ।
सवाल यह है कि क्रोध उत्पन्न होने के कारण क्या हैं ? मुख्यतया ५ कारण हैं – (१) दुर्वचन से, (२) स्वार्थपूर्ति में रुकावट से, (३) अनुचित व्यवहार से, (४) भ्रम के कारण, (५) विचार या रुचि का भेद होने से ।
दुर्योधन के दुर्वचन से श्रीकृष्ण को, दुर्मुख दूत के वचन से प्रसन्नचन्द्र राजर्षि को क्रोध आ गया था । स्वार्थपूर्ति में बाधा उपस्थित होने पर रावण को जटायु पर, सोमिल ब्राह्मण को गजसुकुमाल मुनि पर क्रोध उत्पन्न हुआ । यादवकुमारों के अनुचित व्यवहार के कारण द्वैपायन ऋषि को क्रोध आ गया था । मैतार्य मुनि पर स्वर्णकार को स्वर्णयव चुराने का भ्रम हो गया था, इस कारण क्रोध पैदा हुआ था । इसी तरह पिता-पुत्र, सास-बहू आदि में विचार भेद या रुचि भेद के कारण भयंकर संघर्ष हो जाता है । जब मनुष्य के अहं पर चोट पड़ती है तब उसे क्रोध आता है ।
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