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आनन्द प्रवचन : भाग ८
जो इसके चंगुल में फंस चुके हैं, उन्हें इससे पिण्ड छुड़ाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए । एक कवि कहता है
गुस्सा बड़ी बुरी बीमारी ! जब-जब हुआ क्रोध का दौरा, तब पागल नरनारी ॥गुस्सा०॥ विनय-विवेक शून्य क्रोधी मन, रहा न शिष्टाचारी। लाज-शरम की बातें मुंह से, निकलीं टूटी यारी ॥गुस्सा०॥ क्रोधानल को ज्वालाओं से, जली सभ्यता सारी। तड़प-तड़प कर रह जाती है, मानवता बेचारी ॥गुस्सा०॥ ज्वालामुखी · समान क्रोध यह विस्फोटक है भारी।
होता जब विस्फोट उजड़ती, जीवन नगरी सारी ॥गुस्सा०॥
सचमुच क्रोध की बीमारी लग जाने पर व्यक्ति को न तो परिवार में सूख मिलता है, न समाज में, और न ही राष्ट्र में। ज्वालामुखी के समान इस क्रोध में शारीरिक, मानसिक और आत्मिक सभी बल और सन्तुलन क्षय हो जाते हैं।
आज से कोई तेरह साल पहले की बात है। करोलबाग-दिल्ली में एक ८० वर्ष की बुढ़िया रहती थी। उसके एक लड़की और दो लड़के थे। बुढ़िया के पति मरने से पहले अपनी सारी सम्पत्ति अपनी बेटी रामदुलारी के नाम कर गये थे। परन्तु दोनों भाइयों को यह अच्छा न लगा। उन्होंने बहन-बहनोई को उस सम्पत्ति में से १० हजार रु० रखकर शेष उन दोनों भाइयों को दे देने के लिए कहा। मगर बहन-बहनोई इसके लिए तैयार न हुए। आपस में बहन-भाइयों में मनमुटाव बढ़ता गया । २२ दिसम्बर की रात को कुलभूषण बाहर से लौटकर घर आया और अपने दोनों सालों को मकान खाली कर देने को कहा। लेकिन उन्होंने इन्कार कर दिया, इस पर झगड़ा बढ़ा, कहासुनी हुई। मर्यादा एवं विनय छोड़कर गर्मागर्मी एवं गालीगलौज भी हुई। लड़-झगड़कर दोनों दल के लोग सोने चले गये, मगर दोनों भाइयों के क्रोध का नशा अभी उतरा नहीं था। वे दोनों चुपके से उठे और तेजाब से भरी बाल्टी उठाकर कुलभूषण (बहनोई) के कमरे में घुस गये। क्रोध ने उन्हें विवेकहीन बना दिया। भरी बाल्टी उन्होंने सोये हुए कुलभूषण पर उड़ेल दी। कुलभूषण चीखतेचिल्लाते बाहर भागे। उनकी पुकार सुनकर रामदुलारी उठकर भागी आयी। बचा हुआ तेजाब दोनों क्रुद्ध भाइयों ने अपनी बहन पर भी फेंक दिया। वह भी दर्द से कराहने लगी। इसी बीच लपक कर दोनों भाई गंडासा ले आये और आव देखा न ताव, अपने बहन-बहनोई को काट डाला। कुलभूषण के दोनों लड़के हल्ला-गुल्ला सुनकर तथा माता-पिता की हालत देखकर काँप उठे। वे अपनी जान बचाकर भागने लगे, तभी भागते हुए भानजों को इन दोनों राक्षसों ने पकड़ा और गंडासे से काट डाला। वृद्धा माता ने बेटों के क्रोधावेश की यह पिशाच लीला देखी तो वह सिहर उठी । जार-जार होती रही । उसका करुणक्रन्दन सुनकर मुहल्ले के सैकड़ों लोग दौड़
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