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आनन्द प्रवचन : भाग ८
(५) क्रोध नहीं करता। (६) अनेक शास्त्रों का जानकार होते हुए भी मूकवत् रहता है । (७) दूसरे के दोषों को ढकता है । (८) उनके गुणों को प्रकाशित करता है।
वास्तव में ये गुण पण्डित के विरोध से दूर रहने के विशिष्ट गुण के अन्तर्गत हैं । इन गुणों को अपना कर ही पण्डित विरोध से विरत रह सकता है । . बड़े से बड़े विरोध का शमन कर सकता है ।
प्रसिद्ध विद्वान् पं० ईश्वरचन्द्र विद्यासागर एक बार ट्रेन से यात्रा कर रहे थे। वे जिस डिब्बे में चढ़े थे, वह भरा हुआ था, सिर्फ एक जगह दो अंग्रेजों के बीच में एक आदमी के बैठने लायक जगह खाली थी। लोग डरके मारे वहाँ बैठने का साहस नहीं कर रहे थे, क्योंकि उन दिनों काले आदमी गोरों से बहुत डरते थे । लेकिन विद्यासागर खाली जगह देख कर वहाँ बैठ गए। एक आदमी का इस प्रकार का साहस देखकर बैठे हुए अंग्रेजों में साश्चर्य क्रोध उभरा। एक ने आँखें तरेर कर कहा—गधा और दूसरे ने कहा-उल्लू । यह सुनकर उन्होंने दोनों को बारी-बारी से देखा और कहा-हाँ, मैं उन दोनों के बीच में बैठा हूँ।" यह सुनकर दोनों गोरों का क्रोध शान्त हो गया । वे एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
यह है विरोधविरत सच्चे पण्डित की पहिचान । अब आपको पण्डित को पहचानने में भूल नहीं होगी।
संक्षेप में कहें तो सच्चा पण्डित वह है, जिसकी दृष्टि में, स्वभाव में, व्यवहार में, आचरण में विरोध न हो, जिसके जीवन में सिद्धान्त और व्यवहार, उपदेश और आचरण, अध्ययन और व्यवहार में कोई विरोध न हो। जो लोकसम्मत आचार या शिष्ट-आचार से विरुद्ध प्रवृत्ति न करता हो, क्योंकि पण्डित का इस प्रकार का विरोधी आचरण भी विरोध का कारण बन जाता है । पण्डितों की विशेषताएँ
___ अब मैं ऐसे वास्तविक पण्डित की कुछ विशेषताएँ बताता हूँ, जो उनके जीवन में स्वाभाविक होती हैं। नीतिकार इस सम्बन्ध में कहते हैं
शोकस्थानसहस्राणि भयस्थानशतानि च ।
दिवसे-दिवसे मूढ़माविशन्ति न पण्डितम् ॥ संसार में हजारों चिन्ताएँ और शोक लगे हुए हैं, हजारों भयस्थान-खतरे हैं, प्रतिदिन इन्हें मूढ़ व्यक्ति अनुभव करता है, उसके दिमाग में इनका विषाद घुस जाता है, लेकिन जो पण्डित है, उसके दिमाग में ये चीजें घुसती ही नहीं हैं, क्योंकि वह
१ हितोपदेश
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