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सज्जनों का सिद्धान्तनिष्ठ जीवन १५३ जानता है। वह समय आने पर जीवन के उच्चतम मूल्यों और आदर्शों के लिए अपने प्राण न्योछावर करने को तत्पर रहता है। वह यह भली-भांति जानता है कि मुझे यह मान व-जीवन क्यों और किसलिए मिला है ? इसका उद्देश्य क्या है ? इसलिए वह धर्म के आदर्श और सिद्धान्त पर दृढ़ रहते हुए अपना जीवन जीता है। उसकी दृष्टि, श्रद्धा एवं निष्ठा उच्चतम आदर्श की ओर रहती है। उसका प्रत्येक जीवन व्यवहार सिद्धान्त से अविरुद्ध होता है। इसीलिए वह अपने जीवन में अर्थ-काम को गौण और धर्म को मुख्य समझता है। धर्म-प्रधान अर्थ-काम ही उसके जीवन व्यवहार में स्थान लेते हैं। धर्म को छोड़कर अर्थ और काम को किसी भी मूल्य पर स्वीकार न करने को वह तैयार रहता है। यही कारण है कि सिद्धान्तनिष्ठ व्यक्ति अपना जीवन खाने-पीने, सोने, पढ़-लिख लेने, सन्तान पैदा कर लेने या धन और साधनों का उपार्जन कर लेने में नहीं खोता, किन्तु वह इन्हें मानवीय दुर्बलता समझ कर इनसे ऊपर उठकर त्याग, तप, नियम व्रत और धर्ममर्यादा से ओत-प्रोत होकर जीता है। योगी भर्तृहरि के शब्दों में ऐसे सिद्धान्तनिष्ठ व्यक्तियों का जीवन देखिए
निन्दतु नीतिनिपुणा, यदि वा स्तुवन्तु, लक्ष्मीः समाविशतु, गच्छतु वा यथेष्ठम् । अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,
न्याय्यात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ॥ -नीति निपुण लोग उसके सिद्धान्तनिष्ठ जीवन की निन्दा करें या प्रशंसा करें। लक्ष्मी चाहे आती हो या यथेष्ट रूप से चली जाती हो, मृत्यु चाहे आज ही आने वाली हो या युग-युग तक जिन्दगी चले, किन्तु सिद्धान्तनिष्ठ धीर पुरुष न्यायसंगत मार्ग से एक कदम भी विचलित नहीं होते।
वे धन का चाहे जितना प्रलोभन हो, डिगते नहीं, काम-वासना के चाहे जितने आकर्षण हों, वे विचलित नहीं होते, पद, प्रतिष्ठा, सत्ता, अथवा अन्य किसी भौतिक वस्तु के बड़े-से बड़े प्रलोभन को वे क्षणमात्र में ठुकरा देते हैं। प्रेय और श्रेय दोनों में से एक मार्ग चुनने का जहाँ अवसर उपस्थित हो, वहाँ वे प्रेय को छोड़कर श्रेय को ही अपनाते हैं, चाहे फिर उसके लिए उन्हें कितना ही मूल्य चुकाना पड़े, कितनी ही आर्थिक क्षति सहनी पड़े, कितनी ही सुखसुविधाएँ छोड़नी पड़ें, कितने ही भौतिक प्रगति के लोभ का त्याग करना पड़े, और चाहे कितना ही कष्ट, दुःख एवं विपदाएँ सहन करनी पड़ें। वे इसके लिए हर दम तैयार रहते हैं, किन्तु संकीर्ण क्षुद्र स्वार्थ के लिए वे अपने सिद्धान्त या परमार्थपथ को किसी भी मूल्य पर छोड़ने को तैयार नहीं होते । जीवन के उच्च आदर्शों और निश्चित सिद्धान्तों को ठुकरा कर वे पशुता या दानवता के मार्ग पर हर्गिज नहीं चढ़ते । वह स्वप्न में भी सिद्धान्तों के मामले में समझौता करने को तैयार नहीं होता, चाहे फिर कितनी ही कठिनाइयाँ आएँ, उसके साथी और मित्र या परिजन तक उसका साथ छोड़ दें, चाहे भयंकर से
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