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सत्त्ववान् होते दृढधर्मी
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धर्म की परीक्षा आपात्काल में ही होती है। वैसे भी संसार में कोई ऐसा मनुष्य नहीं, जिसे अपने जीवन में कभी मुसीबतों का सामना न करना पड़ा हो । परन्तु दुःख, विपत्ति, कष्ट, संकट या कठिनाइयाँ सत्त्ववान् के लिए इष्टापत्ति हैं, इनसे उसके साहस, धैर्य, धर्म और सहिष्णुता की परीक्षा होती है । परीक्षा की कसौटी पर प्रतिष्ठित हुए बिना कोई भी व्यक्ति या वस्तु उत्कृष्टता प्राप्त नहीं कर सकती, न कोई उसका मूल्य ही होता है। सोना भयंकर आग में तप कर ही शुद्ध, उत्कृष्ट और उपयोगी होता है । कड़ी धूप में तपने पर ही खेतों में खड़ी फसल पकती है । तपी हुई आग की गोद में पिघल कर ही लोहा साँचे में ढलने के योग्य बनता है। जनता द्वारा पूजी जाने वाली पाषाण मूर्ति पर पैनी छैनी की असंख्य चोटें पड़ती हैं, तभी वह पूजनीय बन पाती है । परीक्षा की अग्नि में तप कर ही वस्तु शक्तिशाली, सौन्दर्ययुक्त और उपयोगी बनती है । मनुष्य भी कठिनाइयों में तप कर उत्कृष्ट सत्त्ववान्, सौन्दर्ययुक्त एवं प्रभावशाली बनता है। जीवन को उत्कृष्ट एवं सत्त्ववान् बनाने के लिए मनुष्य को अधिकाधिक कठिनाइयों और परेशानियों में से गुजरना पड़ता है। इसीलिए नौवाँ जीवन सूत्र में कहा गया है
ते सत्तिणो जे न चलंति धम्मं । सत्त्ववान् वे ही हैं, जो धर्म से विचलित नहीं होते ।
असत्त्ववान् कौन, सत्त्ववान् कौन ? जब-जब धर्म की कसौटी होती है, धर्मपथ पर चलते समय विघ्न-बाधाएँ आती हैं, विपत्तियाँ और कठिनाइयाँ आकर व्यक्ति को धर्म से डिगाने को उद्यत होती हैं, कष्ट और संकट पद-पद पर उसे धर्म से च्युत करने को तत्पर रहते हैं, भय और प्रलोभन उसे धर्म मार्ग से फिसलाने के लिए उतारू हो जाते हैं; तब दुर्बल और कायर मनुष्य स्वीकृत धर्म मार्ग को छोड़ बैठते हैं, प्राण मोही एवं शरीरासक्त व्यक्ति साधनों के अभाव का बहाना बनाकर धर्म के कठोर पथ से विचलित हो जाते हैं, कठिनाइयाँ आते ही मन और बुद्धि से दुर्बल मानव अपने धर्म को तिलांजलि देकर सुख-सुविधा के रास्ते पर चल पड़ते हैं।
यों देखा जाय तो कठिनाइयाँ दुधारी तलवार है । जो दुर्बल हृदय व्यक्ति इनसे घबरा कर धर्म से गिर जाता है, वह हार बैठता है। वह अपने जीवन में विकास, क्षमता शक्ति एवं मनोबल में बृद्धि की सम्भावनाओं को नष्ट कर देता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति मन को मजबूत बनाकर, बुद्धि को सात्त्विक और विवेकशील रख कर एवं हृदय को सत्त्वशील बनाकर उन कठिनाइयों से जूझ पड़ता है, विपत्तियों का सामना करता है, संकटों को अपने मित्र मानकर चलता है अपने आपको कठिनाइयों और संकटों के अनुरूप ढाल लेता है, परन्तु धर्म को हगिज नहीं छोड़ता, वही व्यक्ति सत्त्ववान् होता है। एक और कठिनाइयाँ उसके धर्मपालन की कसौटी बनती हैं और उसे सुधार नवनिर्माण, उत्थान की प्रेरणा देने उत्साह और
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