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आनन्द प्रवचन : भाग ८
___ महर्षि कर्वे ने अपना सारा जीवन ऐसी असहाय महिलाओं के बन्धु बन कर उनके जीवन सुधार, आजीविका और सुदृढ़ता, संस्कारिता तथा व्यवस्था से जीवन जीने की कला सिखाने में खपा दिया। अनेक गरीब दुःखी बहनों के अन्तर के आशीर्वाद उन्हें मिले थे। इनके घर में एक बाई काम करती थी। उसे अपने पति के ऑपरेशन के लिए दो सौ रुपये की जरूरत पड़ी तो कर्वे ने दे दिये । दुर्भाग्य से उसके पति का आपरेशन टेबल पर ही देहान्त हो गया। वह कर्वे के पास आकर फूट-फूट कर रोयी कि अब मैं आपके रुपये कैसे चुका पाऊँगी ?" महर्षि कर्वे ने उसे आश्वासन देते हुए कहा- "बहन ! मैं तुमसे रुपये नहीं माँगता । तुम्हारा पति चला गया, मैं तुमसे रुपयों का तकाजा करूँ यह हो नहीं सकता। तुम आनन्द से मेरे यहाँ रहो । किसी चीज की जरूरत हो तो ले जाओ।" इतना कहते ही उसकी अन्तरात्मा में सन्तोष हुआ । हर्षाश्रु उमड़ पड़े। वह बोली-बन्धुवर ! आप शतायु हों।
___ वास्तव में महर्षि कर्वे ऐसी अनेक पीड़ित महिलाओं के बन्धु बन कर शतायु बने।
इस प्रकार बहुरत्ना वसुन्धरा में अनेक बन्धुरत्न हैं, हुए हैं, जिन्होंने पीड़ित मानवता की सेवा की है, उन्हें संकट से उबारा है । बन्धुता के लिए आवश्यक गुण
परन्तु ऐसी बन्धुता के लिए कुछ गुण तो होने परम आवश्यक हैं-(१) मानवता, (२) दया, (३) सेवा, (४) करुणा, (५) सहानुभूति, (६) सहृदयता, (७) उदारता एवं (८) संवेदना ।
इन गुणों को जीवन में अपनाने वाला ही वास्तव में बन्धु-बान्धव वन सकता है। यही बन्धुतामय जीवन का रहस्य है। जिसने एक बार अपने जीवन में बन्धुता अपना ली, उसे हजारों पीड़ित और दुःखित मानवों के अन्तर के आशीर्वाद मिलते हैं, उसका जीवन सार्थक बन जाता है, उसमें आत्मशक्ति, कार्यक्षमता, दक्षता आदि विशेषताएँ स्वतः आ जाती हैं । आप भी बन्धुतापूर्ण जीवन को परखिए और बनाइए ।
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