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आनन्द प्रवचन : भाग ८
दोनों थोड़ी दूर आगे चले कि दुष्ट सज्जन ने मुस्कराकर कहा - "राजकुमार ! अगर आप सत्यवादी हैं तो अपने वचन के अनुसार मुझे अपना घोड़ा दे दो और मेरे सेवक बनकर रहो ।"
राजकुमार सोचने लगा- ' - " चाहे राज्य चला जाए. प्राण भी चले जाएं, परन्तु मनुष्य को अपने वचन पर दृढ़ रहना चाहिए । यही सत्यधर्म के प्रति दृढ़ प्रीति होगी।" तदनुसार राजकुमार ने सज्जन को घोड़ा आदि सब दे दिये और स्वयं उसका सेवक बन गया । दुष्ट सज्जन घोड़े पर बैठा पूला नही समा रहा था । कुछ दूर चलकर फिर उसने राजकुमार से पूछा - "धर्म के प्रति पक्षपात का फल तो आपने पा लिया अब तो कह दो - "अधर्म से जय होती और अपना घोड़ा वापस ले लो ।" यह सुनते ही राजकुमार बोला - "अरे दुर्मति के धनी ! तू मुझे भी दुर्बुद्धि देता है । यह शरीर तो नाशवान् है, धर्म ही अविनाशी है, उसी की जय है, वही संसार में सारभूत और शरणरूप हैं । गाँव के लोग गंवार और अदूरदर्शी होते हैं, इसलिए उस बूढ़े ने ऐसा कह दिया, परन्तु धर्म की महिमा क्या उसके कहने से चली जाएगी ? वह तो है ही । ऊंट को अंगूर अच्छे नहीं लगते, क्या इससे अंगूर की मधुरता चली जाएगी ? कदापि नहीं ।"
सज्जन ने कहा- आपने भी ठीक गधे की पूंछ पकड़ ली है, उसे छोड़ते नहीं है । इसलिए ऐसे कदाग्रही बन गये हैं। चलिए अगले गाँव के लोगों से पूछें। अगर वे भी अधर्म से जय कहेंगे तो आप क्या करेंगे ?" राजकुमार बोला - " अगर ऐसा होगा तो मैं तुम्हें अपनी दोनों आँखें दे दूंगा ।" दोनों अगले गाँव में पहुँचे । बहाँ के लोगों से पूछा तो उन मूर्खों ने भी कहा - अधर्म से जय होती है
दुष्ट सज्जन बोला—“कहो, धर्म के पूंछड़े ! सत्यवादी ! अब क्या करोगे ?” सज्जन के तानेभरे वचन सुनकर कुमार धैर्य धारण करके एक वटवृक्ष के नीचे जाकर कहने लगा- ओ देव देवियो ! अहो लोकपालो ! आप साक्षी हैं । एकमात्र धर्म ही जगत् में विजयी है । मुझे भी धर्म की शरण हो ।" यों कह कर छुरी से दोनों नेत्र निकाल कर पापी सज्जन को दे दिये। उन्हें लेकर पापी सज्जन यों उपहास करता हुआ चल दिया- 'लो कुमार ! अब आप वहाँ बैठे-बैठे धर्म के फल खाते जाएँ, मैं तो यह चला । "
कुमार अकेला उस घोर जंगल में बैठा विचारने लगा - "यह असंभव बात कैसे हो गई ? परन्तु हाँ, दुष्कर्मों के उदय से कौन-सा दुःख सम्भव नहीं है ? रात हुई चारों ओर घोर अंधेरा छा गया। सभी पक्षी अपने- अपने घोंसले में रैन बसैरा लेने लगे । इसी समय उसी वट पर भारंड पक्षी मिलकर बातचीत करने लगे। सभी नई बात सुनने को उत्सुक थे । एक बूढ़े भारंड पक्षी ने कहा - " यहाँ से पूर्व दिशा में चम्पानगरी है । वहाँ के राजा जितशत्र की पुत्री पुष्पवती अत्यन्त सुन्दर है, ६४ कला में प्रवीण है, राजा-रानी दोंनों को प्रिय है, परन्तु नेत्र न होने से उसकी सब कलाएँ व्यर्थ हैं ।
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