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सत्त्ववान् होते धर्मो
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आजकल आप कृपण क्यों हो रहे हैं क्या संचित की हुई लक्ष्मी किसी के साथ परलोक में जाती है । अत; दान की परम्परा चालू रखनी चाहिए ।" याचकों की बात सुनकर राजकुमार पशोपेश में पड़ गया । उसे एक तरफ कूआ और दूसरी तरफ खाई - सा दिखाई देने लगा । एक और पिता की आज्ञा का पालन और दूसरी ओर दांन मुक्तहस्त से न देने से फैलने वाला अपयश ! अन्त में, उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कुछ भी हो, धर्म का अवसर आने पर अवश्य ही दान दूंगा ।" तदनुसार वह पुनः अधिकाधिक दान देने लगा। जब राजा के कानों में यह बात पडी तो उसने अत्यन्त कुपित होकर राजकुमार को नगर में प्रवेश करने की मना ही कर दी ।
राजकुमार ने सोचा- अब मुझे अपना भाग्य आजमाना चाहिए । पिता के आश्रित होकर रहना उचित नहीं । अतः उसी रात को चुपचाप एक घोड़े पर बैठकर वहाँ से चल पड़ा । दुष्ट सज्जन को किसी तरह पता लग गया । अतः वह भी राजकुमार के साथ हो लिया ।
दोनों एक दिशा में जा रहे थे, रास्ते में ही चालाक सज्जन ने मनोविनोद के बहाने राजकुमार से पूछा - " बोलो, राजकुमार; धर्म श्रेष्ठ है या पाप ?" राजकुमार बोला - "तू बिलकुल मूर्ख मालूम होता है, कहीं पाप श्रेष्ठ होता होगा ? धर्म ही श्रेष्ठ है । धर्म से जय और पाप से क्षय होता है ।"
पापी सज्जन बोला- "राजकुमार ! आप भले ही धर्म को श्रेष्ठ कहें, मुझे तो अधर्म ही श्रेष्ठ प्रतीत होता है । अगर ऐसा न हो तो, धर्मी होते हुए भी आप पर विपत्ति क्यों आई ? इस समय तो अधर्म का ही बोलबाला है । अतः चलें चोरी आदि करके कुछ धन कमाएँ !"
इस पर राजकुमार रुष्ट होकर बोला- “अरे पापी दुष्ट ! तेरे ये वचन सुनना ही पाप है । इस समय किसी व्यक्ति की जय धर्माचरण करते हुए भी न हो तो वह उसके पूर्वकृत अन्तरायकर्म का उदय समझना चाहिए ! यदि किसी की जय अन्याय या अधर्म करते हुए भी होती हो तो वह भी उसके पूर्वकृत कर्म के कारण है, हम दोनों के विवाद का निपटारा यहाँ जंगल में तो कौन करे ? अगले गाँव में पहुँच कर हम गाँव वालों से पूछ कर इसका निर्णय करेंगे । पर मान लो, गाँव के लोग धर्म को श्रेष्ठ न कहें तो आप क्या करेंगे ?" सज्जन ने कहा ।
राजकुमार ने सरलता से कहा - "अगर तुम्हारे कहे अनुसार ग्रामीण लोग अधर्म को श्रेष्ठ बताएँ, तो मैं यह घोड़ा आदि सब चीजें तुम्हें देखकर जिंदगीभर तेरा चाकर बनकर रहूँगा”। राजकुमार को तो दृढविश्वास था कि सभी लोग धर्म को ही श्रेष्ठ कहेंगे ।
यह शर्त करके दोनों अगले गाँव में पहुँचे । वहाँ सज्जन ने दुःख से पीड़ित एक बूढे से पूछा - "क्यों भाई ! इस जमाने में धर्म से जय होती है या अधर्म से ?" दैवयोग से वृद्ध बोला - "इस जमाने में तो अधर्म से ही जय दिखाई देती है" । यह सुनकर
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