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आनन्द प्रवचन : भाग ८
साथ इसका क्या सम्बन्ध है ? इसके माता, पिता, कुल-देश आदि का परिचय दो।" पापी सज्जन ने अशुभ की आशंका से अपने को श्रीवास नगर के राजा नरवाहन का पुत्र
और कुमार को अपना नौकर बताया । परन्तु किसी सिद्ध पुरुष से विद्या पाकर अत्यन्त रूपवान हो गया है। नीच जाति होने के कारण घर छोड़कर यहाँ आ गया और आपका दामाद बन गया। मैं भी पिता को छोड़कर घूमता-घूमता यहाँ आ पहुँचा। मुझे पहिचान कर मेरी जाति बताकर फजीहत न करे, इस आशंका से यह मुझे प्रेम से रखता है।" यह सुनते ही राजा अत्यन्त भड़क उठा और कुमार को मरवाने का षड्यन्त्र रचा। अपने सेवकों को हिदायत दे दी कि "घर के मध्य द्वार से जिसे भी आते देखो, उसे मार डालो।" धर्म के प्रताप से कुमार अपनी पत्नी के द्वारा रोके जाने के कारण घर में ही रहा, सज्जन को भेजा गया। बस, वहीं राजसेवकों ने उसका काम तमाम कर दिया। पापी सज्जन ने अपने किये का फल पा लिया। .
बाद में ललितांग कुमार का रहस्य खुला। सारा परिचय पाने पर राजा को बहुत पश्चात्ताप हुआ। राजा ने कुमार से माफी माँग कर उसे शेष आधा राज्य भी दे दिया। एक बार ललितांग राजा अपने मन्त्री को राज्य संचालन का भार सौंप कर रानी सहित अपने देश में पहुँचा । माता-पिता अत्यन्त प्रसन्न हुए। राजा नरवाहन ने भी ललितांग को अपना राज्य सौंप कर गुणवंत आचार्य से चारित्र अंगीकार किया।
ललितांग राजा ने भी एकबार नरवाहन राजर्षि का उपदेश सुनकर सम्यक्त्व सहित श्रावक के १२ व्रत अंगीकार किये । वृद्धावस्था आने पर अपने पुत्र को राज्य सौंप कर स्वयं ने दीक्षा ले ली। श्रमण धर्म में स्थिर होकर महाव्रतों का पालन करने लगे।
इस प्रकार ललितांग कुमार अनेक विपत्तियाँ आने पर भी धैर्यपूर्वक टिके रहे, परन्तु धर्म से जरा भी विचलित न हुए।
बन्धुओ ! ललितांगकुमार में सत्ववान् के पहले बताये हुए सभी गुण थे। सत्ववान् किस धर्म से विचलित नहीं होता ?
आजकल धर्म के नाम से कई धर्मभ्रम चल पड़े हैं। अधिकांश अविवेकी लोग बाह्य क्रियाकाण्डों, बाह्य आचार, साम्प्रदायिक परम्पराओं, साम्प्रदायिक रीति रिवाजों या कुरूढ़ियों को ही धर्म का चोला पहना कर भोलीभाली जनता के समक्ष धर्मदृढ़ता का प्रदर्शन करते हैं, परन्तु यह वास्तविक धर्मदृढ़ता नहीं है, शुद्ध धर्म तो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, ईमानदारी, दया, क्षमा, देव-गुरु धर्म पर श्रद्धा, अपरिग्रह आदि हैं, उन पर दृढ़ रहना ही धर्मदृढ़ता है । धन का प्रलोभन आये वहाँ धन का प्रलोभन छोड़कर धर्म पर दृढ़ रहना ही धर्म से अविचलता है।
जयपुर के जैन दीवान अमरचन्दजी अहिंसा के कट्टर पुजारी थे। एकबार कुछ लोगों के बहकावे में आकर महाराजा ने उनसे कहा-हमारे बगीचे के शेर को
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