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सत्त्ववान् होते दृढ़धर्मी
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सच्चे साहस आदि का सीधा सम्बन्ध भी पाशविकता या तामसिकता के साथ नहीं होता। पाश्चात्य विचारक पॉल हाइटहेड लिखता है
"True courage is not the brutal force of vulgar heroes but the firm resolve of virtue and reason.”
–सच्चा साहस साधारण वीरों के पाशविक बल का नाम नहीं है, किन्तु वह है-सद्गुणों और तत्सम्बद्ध कारणों के सम्बन्ध में दृढ़ संकल्प । इसके अतिरिक्त जब मनुष्य में सत्वगुण बढ़ जाए, तब समझना चाहिए कि वह सत्त्ववान् है। जिसके पास दो-चार रुपये हों, उसे धनवान् नहीं कहते, धनवान् उसे कहते हैं, जिसके पास हजारों-लाखों रुपये हों । इसीप्रकार विद्यावान् उसे कहते हैं; जो अतिशय विद्या पढ़ा हुआ हो, जो दो-चार कक्षा तक पढ़ा हुआ हो, उसे विद्यावान् नहीं कहा जाता। इसी प्रकार सत्त्ववान् उसे कहते हैं, जिसमें सत्त्वगुण अतिशय मात्रा में हो । सत्त्वगुण बढ़ा हुआ है, इसकी पहचान भगवद् गीता में इस प्रकार बताई है
सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन् प्रकाश उपजायते ।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद् विवृद्धं सत्त्वमित्युत ॥ १४ ॥ -जब इस देह में अन्तःकरण इन्द्रियों आदि सभी द्वारों से प्रकाश और ज्ञान (चेतना और बोधशक्ति) उत्पन्न होते हैं; तब समझना चाहिए कि जीवन में सत्त्वगुण बढ़ा है।
चेतना और बोधशक्ति के प्रकाश में जो भी कार्य साहसपूर्वक होंगे, वे हिंसा, असत्य, लूटपाट, चोरी, बलात्कार, आक्रमण आदि से रहित होंगे। केवल धर्म से सम्बन्धित कार्य होंगे।
एक सत्त्ववान् व्यक्ति है, उस पर उसके परिवार और समाज ने झूठा आरोप या आक्षेप लगा दिया है, या उसको किसी ने क्षति या हानि पहुँचाई है, अब सत्त्ववान् व्यक्ति प्रतीकार तो करेगा, किन्तु वह हिंसक एवं असात्त्विक तामस तरीकों से प्रतीकार नहीं करेगा, वह रोष और आवेश में आकर उन व्यक्ति या व्यक्तियों पर झूठा इलजाम नहीं लगाएगा, न उन पर प्रहार करेगा या न उनका विनाश करेगा या करने की बात सोचेगा । वह नैतिक, आध्यात्मिक और अहिंसक ढंग से प्रतीकार करेगा। शडे शाठ्यं समाचरेत (दुष्ट के साथ दुष्टता करो) यह नीति सत्त्ववान् की नहीं होगी । कई साम्प्रदायिक लोग धर्म खतरे में है, या बलात् धर्म-सम्प्रदाय परिवर्तन कराने से धर्म की सेवा होती है, इस प्रकार के थोथे एवं मिथ्या नारे लगा कर साहसपूर्वक दूसरे धर्म वालों के साथ अनुचित-हिंसक व्यवहार करते हैं, उन्हे सताते हैं, तंग करते हैं, उन्हें मारते पीटते हैं, उनके प्राण ले लेते हैं, उनके अधिकार छीन लेते हैं, या जबरन धर्म परिवर्तन तलवार के बल पर या दण्डशक्ति के बल पर करा देते हैं, ये सब धर्म की सेवा नहीं, पाप और अधर्म की सेवा है, पैशाचिक कृत्य है, अमानुषिक कुकर्म हैं । धर्म के नाम पर इस प्रकार के दुःसाहसिक कुकृत्य करने वाले सत्त्ववान्
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