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साधु-जीवन की कसौटी : समता १८६ सुनता, और बोलता है। ऐसे समत्वनिष्ठ साधकों के लिए भगवद्-गीता का आशीर्वचन है
इहैव तैजितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म, तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥ जिनका मन साम्ययोग (समत्वभाव) में स्थित है, उन्होंने इसी जीवित अवस्था में सारा संसार जीत लिया अर्थात् वे जीते जी संसार से मुक्त हो गए। क्योंकि वीतराग परमात्मा निर्दोष (दोषों से रहित) और सम हैं। इस कारण वे एक तरह से परमात्मा में ही स्थित हैं । इसी लिए गौतम कुलक में कहा गया
'ते साहुणो जे समयं चरंति ।' साधु वह है, जो समता का आचरण करे ।
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