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सत्त्ववान् होते दृढ़धर्मो १६३ और दुःखों से घबराकर धर्मपथ को छोड़ देता है, और पूरी सुखसुविधा में रहता है, तब एक प्रकार से उस असत्त्वशाली की विवेक की आँखें बन्द रहती हैं। अपनी मौज में वह मनमानी करता रहता है। इस प्रकार के अल्हड़ और असत्त्वशील जीवन में अनजाने ही अनेक दोष और विकार घुस जाते हैं। उसे पता तभी चलता है, जब धर्मच्युत होने के कारण अशुभ कर्मोदयवश उस पर अनेक संकट, दुःख और कष्ट आ पड़ते हैं । तब उसमें उन संकटों आदि को सहन करने की शक्ति नहीं होती और वह रोता-कलपता, हाय-हाय करता उन्हें सहता है। परन्तु उन्हें सहन करने से जो कर्मक्षय होने चाहिए थे, वे नहीं हो पाते, बल्कि आर्तध्यान-रौद्रध्यान के कारण और अधिक अशुभ कर्मों को वह बाँध लेता है ।
कई सत्त्वरहित मनुष्य अपने आपको धर्मात्मा कहलाने या धर्मपालन का दिखावा करने के लिए कई बार संयम, नियम, और अनुष्ठानों का कार्यक्रम अपनाते हैं, धार्मिक व्रतों और नियमों का पालन भी करते हैं, लेकिन जब कभी उनके सामने कोई ऐसी परिस्थिति आ जाती है, जो उसके धार्मिक नियम और संयम के प्रतिकूल होती है, तो वे दृढ़ता नहीं दिखा पाते, कोई न कोई बहाना बनाकर फिसल जाते हैं । परिस्थितियों के आगे घुटने टेकने वाले ऐसे सत्त्वहीन लोग ढीले-पोचे और परिस्थितियों के दास हो जाते हैं। ऐसे लोग परिस्थिति अनुकूल आते ही प्रसन्नता से खिल उठते हैं, प्रतिकूल परिस्थिति आते ही एकदम मुरझा जाते हैं। खेद और दुःख से घबरा उठते हैं। पहली परिस्थिति की सजातीय किसी अन्य परिस्थिति का आगमन हुआ कि बॉछे खिल उठीं और दूसरी परिस्थिति जैसी कोई परिस्थिति फिर आई कि पुनः रोने लगे । ऐसे परिस्थिति प्रेरित लोगों में और किसी के द्वारा संचालित कठपुतली में क्या कोई अन्तर है ? निःसन्देह कठपुतली किसी मनुष्य द्वारा संचालित होती है और ऐसे व्यक्ति होते हैं, परिस्थिति द्वारा संचालित । जिस मनुष्य में अपना अस्तित्व, व्यक्तित्व, गौरव, हर्ष-विषाद अपने वश में नहीं होता, वह कठपुतली से अधिक कुछ नहीं है। मनुष्य का अपना अस्तित्व और अपना व्यक्तित्व होता है । सत्त्ववान् व्यक्ति उसका संचालन अपनी शुद्ध आत्मा के द्वारा धर्मपथ के माध्यम से करते हैं जबकि सत्त्वहीन मनुष्य परिस्थितियों के दास बन कर उसका संचालन परिस्थिति के अनुसार करते हैं। सत्त्ववान व्यक्ति परिस्थितियों के स्वामी होते हैं, वे परिस्थिति पर विजय-पाते हैं और अपनी शुद्ध आत्मा द्वारा उसका संचालन करते हैं। जबकि सत्त्वहीन व्यक्ति परिस्थितियों के हाथों में अपना संचालन सौंप कर उनके दास बन जाते हैं।
ऐसे परिस्थिति-दास धर्म से नियम, त्याग, व्रत, प्रत्याख्यान, या संकल्प लेकर भी किसी कारण के उपस्थित होते ही हर्ष-बिषादादि आवेगों में बहकर उक्त नियम या संकल्प को तोड़ देते हैं, जबकि परिस्थितिजयी सत्त्ववान कैसी भी विकट परिस्थिति क्यों न हो, हर्ष-विषादि आवेगों में बहकर अपने आप में अपने धर्म या धार्मिक
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