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सज्जनों का सिद्धान्तनिष्ठ जीवन १६१ "I have reverence for principles which grow out of sentiments, but as to sentiments, which grow out of principles.”
"मैं सिद्धान्तों का आदर करता हूँ जो कि भावुकता प्रेरित विचारों से पृथक् उत्पन्न होते हैं, क्योंकि 'भावुकता प्रेरित विचार हमेशा सिद्धान्तो' से पृथक् ही उत्पन्न होते हैं।"
मतलब यह है कि सिद्धान्त अलग चीज है और भावुकतावश किसी विचार को थोड़ी देर के लिए स्थिर करना अलग चीज है । क्योंकि रिचर नामक विद्वान् के मतानुसार सिद्धान्त स्थायी होते हैं
'Principles like troops of line, are undisturbed and stand bast.'
सिद्धान्त एक श्रेणी के सैन्यदल की तरह-अक्षत या अविक्षिप्त और मजबूती से स्थिर रहते हैं।
यही कारण है कि सिद्धान्तों और कायदे-कानूनों या नियमों में बहुत अन्तर होता है । पाश्चात्य विद्वान् सीले (Seelay) ने इन दोनों का अन्तर बताते हुए कहा है
"Principles last for ever but special rules pass away with the things and conditions, to which they refer" सिद्धान्त सदा के लिए स्थायी होते हैं, किन्तु खास नियम सम्बन्धित परिस्थितियों और वस्तुस्थितियों के साथ-साथ चलते हैं। उदाहरण के लिए साधु के लिए सर्वथा पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन एक सिद्धान्त है, यह शाश्वत सत्य है, इसके लिए नियम बनाया गया कि ब्रह्मचारी को स्त्री-स्पर्श नहीं करना चाहिए। किन्तु अगर कोई साध्वी नदी में डूब रही है, साधु तैरना जानता है, तो शास्त्र में विधान है कि वह तुरन्त कूद कर साध्वी को पकड़ कर नदी से बाहर निकाले और उसे डूबने से बचाए।
डूबती हुई साध्वी को पकड़कर बाहर लाने की स्थिति में स्त्री स्पर्श का नियम पालन नहीं हुआ, लेकिन ब्रह्मचर्य का जो शाश्वत सिद्धान्त है, उसकी सर्वथा रक्षा है और होनी आवश्यक है। साध्वी को नदी से निकालकर बाहर लाने वाले साधु के मन के किसी भी कोने में स्त्रीस्पर्श के बावजूद जरा-सा भी अब्रह्मचर्य कामैथुनभाव का विचार नहीं आना चाहिए। उस समय उसे माता या भगिनी की भावना से ही उसका स्पर्श करना है। इसी प्रकार सर्वथा अहिंसा पालन साधु के लिए एक सिद्धान्त है, किन्तु साध्वी को बचाने में जलकायिक व जलाश्रित जीवों की हिंसा होगी ही। अतः सचित्त जल का स्पर्श न करने के नियम का पालन न होने पर भी भाव से किसी जीव की हिंसा न करने का शाश्वत सिद्धान्त सुरक्षित है। हिंसा होना एक चीज है और हिंसा करना दुसरी चीज।
मतलब यह है कि सिद्धान्त शाश्वत सत्य होते हैं, परन्तु नियम यद्यपि सिद्धान्त रक्षा की दृष्टि से बनाये जाते हैं, मगर वे देश, काल और परिस्थिति के अनुसार
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