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आनन्द प्रवचन : भाग ८
हों तो वृक्ष के ऊपरी भाग पर उसका प्रभाव पड़ना निश्चित है । कमजोर जड़ों वाला पेड़ दिनों दिन जीर्ण-शीर्ण होता जायेगा। उसका विकास भी रुक जाएगा । जड़ों को खाद-पानी मिले बिना उसे फैलने-फूटने का अवसर नहीं मिलेगा। अत: उस वृक्ष के विकसित होने की आशा नहीं की जा सकती। ठीक इसी तरह मनुष्य जीवन में सिद्धान्त की जड़ें कितनी गहरी होंगी, उतना ही उसका प्रतिफल बाह्य जीवन की उन्नति-अवनति के रूप में दिखाई देगा। मनुष्य जीवन रूपी वटवृक्ष की जड़ें सिद्धान्त हैं । ये जड़ें जितनी गहरी धंसी हुई और मजबूत होंगी, वाह्य जीवन भी उतना ही उसी अनुपात में सुविकसित, सुसंतुलित, प्रगतिशील और सुस्थिर बना रहेगा, सुखशान्तिमय बना रहेगा। परिस्थितियों की आँधियों से उसका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। विपरीत परिस्थितियाँ उस सिद्धान्तनिष्ठ व्यक्ति के जीवन पर उतना ही प्रभाव डाल सकती हैं, जितना पतझड़ पेड़ों पर डालता है । विपत्तियाँ मनस्वी एवं सिद्धान्तनिष्ठ व्यक्ति का कुछ बिगाड़ती नहीं, वरन् उसकी प्रतिभा में चार चांद लगा जाती हैं, जिसके बल पर उसे और अधिक तेजी से आगे बढ़ने का अवसर मिल जाता है । पेड़ का बाहरी सौन्दर्य और दीर्घ जीवन उसकी जड़ों के बढ़ने-फैलने पर निर्भर है, तथैव जीवन का उत्थान और सौन्दर्य भी सिद्धान्तरूपी मूल की अभिवृद्धि पर निर्भर है। इसलिए यह आवश्यक है कि आप जीवनवृक्ष के मूल-सिद्धान्तों को सींच-सींच कर गहरे और सुदृढ़ बनाएँ।
निष्कर्ष यह है कि सिद्धान्तनिष्ठा जीवन वृक्ष के विकास के लिए अत्यन्त जरूरी है। सिद्धान्तनिष्ठा के लिए आवश्यक गुण
अब हमें यह सोचना है कि सिद्धान्तनिष्ठा के लिए कौन-कौन से आवश्यक तत्व-जिन्हें हम गुण कह सकते हैं मनुष्य में होने चाहिए ? मैं कुछ मुख्य-मुख्य गुणों की ओर आपका ध्यान खींचता हूँ, जो एक सज्जन व्यक्ति में पाये जाते हैं ।
सर्वप्रथम गुण, जो सिद्धान्तनिष्ठा के लिए आवश्यक है, वह है-आत्मविश्वास। दुनिया विश्वास के आधार पर चलती है, इसमें कोई सन्देह नहीं, किन्तु बीच-बीच में कई बार विश्वासघात की घटनाएँ भी होती रहती हैं। इसलिए इस विश्वास और अविश्वास के झूले में झूलती हुई दुनिया में एक ही व्यक्ति ऐसा है, जिसकी वफादारी और विश्वसनीयता पर कभी ऊँगली नहीं उठाई जा सकती और जो कभी धोखा नहीं दे सकता, ऐसे सच्चे मित्र का नाम है-अपना आत्मा। अपनी आत्मा के सिवाय संसार में और कोई मित्र नहीं, जिस पर पूरा विश्वास किया जा सके। इस पर जितना भी विश्वास किया जाएगा, उतना ही सिद्धान्त पर टिके रहने की शक्ति बढ़ेगी
और दूसरे भी उसी अनुपात में आप पर विश्वास करने लगेंगे। आत्मा से बढ़कर विश्वस्त मित्र विश्व में और कौन है ? आचारांग सूत्र में स्पष्ट कहा है
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