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साधु जीवन की कसौटी : समता १७६
दुःख में भी समभाव रखता है । चाहे उस पर सागर लहराने लगें, वह अपनी मस्ती में, दुःख दोनों ही अवसरों पर उसके चेहरे पर समतावान व्यक्ति कष्टों और विपत्तियों से
साधुचरित पुरुष सुख और संकटों के पहाड़ टूट पड़ें, और सुख का समता भाव में रहता है । सुख हो चाहे प्रसन्नता अठखेलियाँ करती रहती हैं । घबराता नहीं, बल्कि अपने आपको सन्तुलित रखकर धैर्य से वह उनका सामना करता है । उर्दू शायर जफर के शब्दों में
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"हर आन हँसी, हर आन खुशी, हर वक्त अमीरी है बाबा ।
जब आलम मस्त फकीर हुए, फिर क्या दिलगीरी है बाबा ?"
अरबस्तान का खानदान घर का एक लड़का विपत्ति में फंस जाने से शत्रुओं के हाथ में पड़ गया । उन्होंने उसे गुलाम के रूप में बेच डाला । उसका मालिक बड़ा निर्दय था । एक व्यापारी उस गाँव में व्यापार के निमित्त आया करता था । उसने इस युवक को कठोर परिश्रम करते देखकर पूछा --- "भाई ! तुम्हें बड़ा दुःख है ।" सुख दुःख में समभावी युवक बोला - "जो पहले नहीं था और भविष्य में रहेगा नहीं उसके लिए व्यर्थ क्यों चिन्ता की जाए ?" कई वर्षों बाद फिर वह व्यापारी इस गाँव में आया तो उसे पता चलता है कि उस युवक का मालिक मर गया है और वह अपने मालिक की गिरी हालत देखकर उसकी पत्नी और पुत्र का भरण-पोषण स्वय अपनी कमाई से करता था । व्यापारी ने इस समय उसकी हालत पूछी तो उसने कहा – “जो परिवर्तनशील है, उसे सुख भी क्यों माना जाए और दुःख भी क्यों ?" दो साल बाद फिर वह व्यापारी आया तो देखा कि वह दास अब उस जिले का अग्रगण्य बन गया है । उसके अधीन बहुत से नौकर काम करते हैं। आस-पास के गाँववालों ने उसे सरदार (नेता) बनाकर वहाँ के डाकुओं को दबा दिया है । इस सेवा के बदले में उन्होंने इसे बहुत-सी जमीन भी दे दी है। ऐसी समृद्ध स्थिति में व्यापारी द्वारा सुख-दुःख सम्बन्धी प्रश्न पूछे जाने पर उसने पूर्ववत् उत्तर दिया। थोड़े वर्षों बाद जब वह व्यापारी इस गाँव में आया तो देखा कि युवक अब राजा बन गया है । एक विशेष युद्ध में उसने राजा को सहायता काफी पहुँचाई, जिसके कारण राजा ने उसे अपना जामाता और उत्तराधिकारी बना दिया है । व्यापारी ने अब राजा बने हुए उस दास से पूछा - " क्यों अब तो सुखी हो गए न ? अब तो खूब खाओ, पीओ, ऐश आराम करो।" उसने कहा - "जो परिवर्तनशील है, उसके भरोसे मैं नहीं चलता, मैं तो शाश्वत सुख के मूल समत्व पर चलकर अपना जीवन व्यतीत करता हूँ ।" उसका समत्वमंत्र शायर अकबर के शब्दों में था—
मुसीबत में न घबरा कर गुजर जैसे बने वैसे । ये दिन भी जाएँगे एक दिन, वे दिन भी आएंगे एक दिन ।
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सचमुच सुख में फूलना और दुःख में तड़फना, ये दोनों ही स्थिति समता से भटकाने वाली हैं । समता की पगडंडी पर चलने वाला सुख और दुःख दोनों में सन्तोष और शान्ति का अनुभव करता है ।
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