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आनन्द प्रवचन : भाग ८
'सत्य' को अपनाया । परिणाम यह आया कि कुछ ही देर में उनके प्राणपखेरू उड़ गये।
यह था सिद्धान्त के लिए प्राणोत्सर्ग ! जो सिद्धान्तनिष्ठ होता है, उसमें प्राणमोह नहीं होता। सिद्धान्तनिष्ठ भय और प्रलोभन से दूर
चम्पानगरी का अर्हनक श्रावक अत्यन्त धर्मनिष्ठ था। उसकी हड्डियाँ और नसें धर्म के प्रेम एवं अनुराग से रंगी हुई थीं। उसमें केवल सिद्धान्तों का ज्ञान ही नहीं था, उन सिद्धान्तों के प्रति हृदय में प्रेम कूट-कूट कर भरा था। कई लोग सिद्धान्तों के तो बहुत जानकर होते हैं उन्हें बोल, थोकड़े बहुत आते हैं, शास्त्र भी 'कण्ठस्थ होते हैं, वे शास्त्रों का पुर्जा-पुर्जा खोल देते हैं, परन्तु वे सिद्धान्त उनके जीवन में रमे हुए नहीं होते। उन्हें सिद्धान्तो से प्रेम नहीं होता। चीन के महान् धर्मनेता कन्फ्यूशियस ने ठीक ही कहा है
"He who merely knows right principles is not equal to him, who loves them."
"वह जो केवल सच्चे सिद्धान्तों को जानता है, उसके समान नहीं है, जो उन सिद्धान्तों से गाढ़ प्रेम करता है।"
साथ ही अर्हन्नक धर्म के उन सिद्धान्तों का केवल प्रशंसक ही नहीं था, वरन् सिद्धान्तों के अनुसार आचरण भी करता था। कई लोग केवल सिद्धान्तों के प्रशंसक ही होते हैं, आचरण के समय वे बगलें झांकने लग जाते हैं।
इस सन्दर्भ में मुझे एक पत्रिका में पढ़ी हुई रोचक घटना याद आ गई
एक मुनिजी के सान्निध्य में बैठे कुछ भाइयों में से एक भाई ने दूसरे भाई से पूछा-"क्या आप अणुव्रती हैं ?" उसने कहा-'अवश्य' । जब उससे पूछा गया कि वह कब से अणुव्रती हैं, ? तो उसने बताया कि “जब से अणुव्रत आन्दोलन चला है, तबसे हूँ।" इस पर उसने पूछा-जब आप अणुव्रती हैं तो आप तौल-माप में गड़बड़ नहीं करते होंगे, ब्लेक नहीं करते होंगे ?" उसने कहा करते हैं । "इस पर उसने साश्चर्य पूछा-"तब आप अणुव्रती कैसे ? मैं तो सिर्फ प्रशंसक अणुव्रती हूँ प्रवेशक या पूर्ण अणुव्रती नहीं।" उसने कहा। अर्थात्-वह भाई अणुव्रत के नियमों की केवल प्रशंसा करने वाला था, आचरण करने वाला नहीं।
___ इसीतरह सिद्धान्तों का केवल प्रशंसक सिद्धान्तनिष्ठ कदापि नहीं कहा जा सकता । तथागत बुद्ध के शब्दों में ऐसा व्यक्ति चाहे जितनी धर्म-संहिताओं का पाठ करता हो, वह उन संहिताओं के अनुसार आचरण नहीं करता। वह तो उस ग्वाले के समान है, जो दूसरों की गायों को गिनता रहता है।"
अर्हन्नक धर्मशास्त्रों का पाठ केवल पढ़ने-सुनने वाला ही न था, वह उन पाठों को जीवन में उतारने वाला था। एकबार उसकी धर्म-सिद्धान्तनिष्ठा की कड़ी
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