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आनन्द प्रवचन : भाग ८
मुझे दुनिया में और कोई बात इतना आघात नहीं पहुँचाती, जितनी कि यह बात, जिसे मैं अक्सर सुनता हूँ कि “एक मनुष्य यह नहीं जानता कि मुझे अपना समय कैसे बिताना चाहिए।"
ऐसे कुछ लोगों को खाली बैठे देख कर एक प्रोफेसर ने पूछा- "कहो, क्या हो रहा है ?" उन्होंने कहा--"कुछ नहीं साहब ! वक्त काट रहे हैं।"
प्रोफेसर बोले-'अरे ! तुम क्या वक्त काटोगे, वक्त ही तुम्हें काट रहा है और ऐसा काट रहा है कि कुछ दिनों बाद तुम्हीं देखोगे कि किसी मतलब के नहीं रहे।"
यों तो समय काटने के लिए निकम्मे और निठल्ले लोग कोई न कोई काम निकालते हैं । गप्पें हांकने, मटरगश्ती करने, ताश खेलने, सिनेमा देखने, बेकार काम में चौधरी बनने, दूसरे के कामों में अकारण ही टांग अड़ाने की, यारबाजी की आदत आलसी लोगों में पायी जाती है। फिर उन्हीं के जैसे कुछ बेकार लोग चौकड़ी जमा कर बैठ जाते हैं और इधर-उधर की निन्दा, चुगली, आलोचना या यारबाजी के शुगल चलने लगते हैं । उनकी बातों का कोई आधार या उद्देश्य तो होता नहीं, सिर्फ समय काटने के लिए ही वे इकट्ठे होते हैं। इसप्रकार की चौकड़ी का जमाव उन निठल्लों के दोषों, दुर्गुणों और दुर्व्यसनों को बढ़ाने में ही सहायक होता है।
कहावत है"Empty mind is devil's workshop"
"खाली दिमाग शैतान का कारखाना है।" जो बेकार रहेगा, उसे कुछ न कुछ शैतानी और उखाड़-पछाड़ सूझेगी । कुछ वर्षों पहले भारत में राजा, रईस, अमीर, उमराव, जागीरदार, ठाकुर, जमींदार साहूकार, महंत और मठाधीश बहुत थे। उनके पास आमदनी बहुत थी और उनके सारे कार्य या व्यवसाय नोकर चाकरों के बलबूते पर चला करते थे। कार्य का कोई उत्तरदायित्व उनके सिर पर न होने से उन्हें काफी समय मिलता था। इस बचे हुए समय का उपयोग सामान्यतया इन्हीं खुराफातों में होता था । बहुत ही कम लोग ऐसे होते थे, जो अपने इस अमूल्य समय को किसी मूल्यवान सत्कार्य में लगाते थे। अब वे वर्ग कम होते जा रहे हैं। परिस्थितियाँ उन्हें अब समय का किसी न किसी श्रमकार्य या आजीविका के कार्य में उपयोग करने के लिए बाध्य करती है। निठल्लापन या बेकार बैठना इसलिए भयंकर है कि बेकार आदमी शराब-अफीम आदि व्यसनों, भोगविलास, व्यभिचार, शिकार एवं लड़ाई झगड़े आदि बुरे कामों और बुरे विचारों की ओर आकर्षित और अग्रसर होगा। कार्यव्यस्त व्यक्ति फुरसत न मिलने के कारण प्रायः इन बुराइयों से बचा रहता है । परन्तु बेकार के लिए तो सर्वनाश का द्वार खुला रहता है।
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