________________
सज्जन होते समय-पारखी
१४५
सेठ करोड़ाधीश की इज्जत बिगड़ जाती। आने से रुपये एजेंट के थोड़ी-सी देरी से ॥नुक०॥३॥ देश पर दुश्मन लोगों का कब्जा हो जाता। सजने के कारण वीरवर, थोड़ी-सी देरी से ॥नुक०॥४॥ आलीशान इमारतें, जल खाक हो जातीं।
आने के कारण दमकलें थोड़ी-सी देरी से ॥नुक०॥५॥ जिस समय लोहा तपा हो, उस समय धन पर चोट न लगाई जाए तो लोहे से जो कुछ बनाना है, वह नहीं बन सकता।
गई सम्पत्ति परिश्रम से, विस्मृत ज्ञान अध्ययन से, नष्ट स्वास्थ्य दवा से एवं नष्ट संयम गुरुकृपा से पुनः प्राप्त हो सकता है, लेकिन गया हुआ वक्त वापस कभी नहीं मिल सकता । इसकी कल्पना भी न करो कि कोई भी अवसर तुम्हारे द्वार पर आकर नहीं पुकारेगा।
अवसर पर कही हुई बात महात्मा गांधीजी ने एक बार कहा था--"कोई समय बोलने और काम करने का होता है तो कभी मौन और अकर्मण्यता धारण करनी पड़ती है।"
यह तो हर कोई जानता है कि समय पर कही गई बात और समय पर किया गया काम प्रभावशाली होता है। राम का नाम अत्यन्त मंगलकारी है, परन्तु अगर कोई मूर्ख विवाह जैसे मांगलिक प्रसंग पर 'रामनाम सत है, सत बोल्यां गत है' कहने लगे तो कितना बुरा लगेगा । इसलिए कविवृन्द कहता है---
"नीकी पै फीकी लगै, बिन अवसर की बात । जैसे बरनत युद्ध में, रस शृंगार न सुहात ॥ फीकी पै नीकी लगै, कहिय समय बिचारी।
सबको मन हर्षित करे, ज्यों विवाह मे गारी॥" आचार्य वृद्धवादी और सिद्धसेन दिवाकर के बीच यह शर्त हुई कि इन चरवाहों को जो सर्वज्ञ का अस्तित्व भलीभांति समझा दे, वही शास्त्रार्थ में जीता समझा जायेगा। निर्णायक स्वयं चरवाहे ही होंगे। दोनों जंगल में ग्वालों के दल के बीच आए। पहले सिद्धसेन ने बहुत ही विद्वत्तापूर्ण शब्दों में सर्वज्ञ की सिद्धि के लिए प्रतिपादन किया। परन्तु संस्कृत भाषा और क्लिष्ट शब्दों में होने के कारण वे उनकी बात को बिलकुल न समझ सके। उसके पश्चात् श्री वृद्धवादी आचार्य ने चरवाहों को उनकी लोक भाषा में पद्य बना कर रास करवा कर समझाया। बहुत सीधी-सादी सरल भाषा में होने के कारण सर्वज्ञ के अस्तित्व की बात चरवाहों के गले उतर गई। उन्होंने आचार्य वृद्धवादी के पक्ष में अपना निर्णय दिया अतः विजय वृद्धवादी की हुई । बिना अवसर के क्लिष्ट भाषा में कही जाने के कारण ग्वालों के समक्ष उनकी हार हुई। पण्डितराज जगन्नाथ की एक सुन्दर उक्ति है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org