________________
१३०
आनन्द प्रवचन : भाग ८
उन दिनों महात्मागाँधी जी वर्मा में थे। एक बार उन्होंने समय के सदुपयोग तथा शारीरिक-मानसिक विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन ८ घंटे श्रम करना निहायत जरूरी बताया। एक सज्जन को यह बात जची नहीं। वे बीच में खड़े होकर पूछने लगे-बापू ! अगर ८ घंटों के बजाय ४ घंटे ही मेहनत के लिए रखे जाएँ तो क्या हर्ज है ? आखिर इन्सान को आराम की भी जरूरत है।" बापू ने मुस्करा कर पूछा-"पहले मेरे इस प्रश्न का उत्तर दीजिए कि दिन-रात में कुल मिलाकर २४ घंटे होते हैं न ! उनमें से ८ घंटा आप नींद में खर्च करते हैं बल्कि सोने के लिए ६ घंटे ही काफी है। अब २४ घंटों में से आपके पास बचे १८ घंटे जिनमें से मेहनत के लिए आप सिर्फ ४ घंटे ही खर्च करना चाहते हैं, तो बाकी बचते हैं १४ घंटे । इन बचे हुए १४ घंटों का आप क्या उपयोग करेंगे ?"
बाकी के समय का सदुपयोग आप को समाज या देश की सेवा या धार्मिक कार्यों में करना ही चाहिए। इस उत्तम मानवतन-मन बुद्धि आदि को पाकर यों ही आलस या विषयभोगों में पड़कर अपने जीवन को समाप्त कर देने में क्या बुद्धिमानी है ? परन्तु मूर्खजन तो नहीं समझते सो नहीं समझते, साधारणजन भी इस बात को भलीभांति नहीं समझते। इसीकारण समय न मिलने की उनकी शिकायत रहती है।
परन्तु मूर्खजन और साधारण जन से ऊपर उठे हए तीसरी कोटि के व्यक्ति सज्जन होते हैं, जो समय का मूल्य जानते हैं, जिन्हें समय से बेहद प्रेम होता है, जिन्हें एक भी क्षण नष्ट करना अत्यन्त दुःखदायी लगता है और जो समय का सदुपयोग करना भलीभांति जानते हैं, वे अपने कार्य समयबद्ध होकर करते हैं, अवसर का ठीक उपयोग करते हैं, बल्कि समय से पहले ही सावधान हो जाते हैं। कोई भी अवसर नहीं चूकते, आज का और अभी का काम कल पर या आगे पर नहीं टालते, युगानुलक्षी देश कालानुसार उचित परिवर्तन भी करते हैं। गौतमकुलक में ऐसे ही समयज्ञ व्यक्तियों के लिए कहा गया है
"ते साहणो जे समयं चरंति ।"२ __ वे साधु (सज्जन) पुरुष हैं, जो समय को जानते हैं एवं समयानुसार चलते हैं।
__ऐसे ही साधुपुरुषों के लिए शास्त्र में कालण्णू (कालज्ञ) और समयण्णू-समयज्ञ कहा गया है।
१ 'साहुणो' का अर्थ साधुचरित पुरुष या सज्जन ही यहाँ उपयुक्त है। इसमें संत
मुनियों का भी समावेश हो जाता है और सज्जन गृहस्थ का भी। २ 'चर धातु गति करने के अर्थ में है, जो गत्यर्थक धातु होता है, वह ज्ञानार्थक भी
होता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org