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पण्डित रहते विरोध से दूर १०५ व्यक्ति को पण्डित की कोटि में रखा जा सकता है ? कदापि नहीं। फक्कड़ सन्त कबीर ऐसे लोगों के लिए साफ-साफ कह देते हैं
पण्डित और मसालची दोनों सूझे नाहि ।
औरन को करे चांदना, आप अन्धेरे माहिं ॥ जो सच्चा पण्डित होगा, वह उपदेश और आचरण के इस प्रकार के विरोध से दूर होगा। वह अपने जीवन में कोई दुर्बलता होगी तो उसे प्रकट कर देगा या उस सम्बन्ध में दूसरों को उपदेश नहीं देगा। पण्डित का जीवन अपने कथन से बिलकुल विपरीत तो कदापि नहीं होगा। वह सिद्धान्त के अनुरूप अपने जीवन व्यवहार को ढालने का प्रयत्न करता है। सिद्धान्त और जीवन व्यवहार के विरोध को वह कदापि पसन्द नहीं करता।
कई पण्डित केवल पण्डितों के बीच में ही पण्डित होते हैं । वे अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन सभा सोसाइटियों में नहीं कर पाते ! वे पण्डितों के साथ ही विवाहादि अवसरों पर शास्त्रार्थ करके पण्डितमानी बन जाते हैं। ऐसे दो पण्डित कहीं मिल जाते हैं, या किसी यजमान के यहाँ एकत्रित हो जाते हैं तो प्रातः एक दूसरे का विरोध (बुरा बोलकर एक दूसरे के पाण्डित्य की मौखिक निन्दा) किया करते हैं । इसीलिए ऐसे पण्डितों पर किसी ने व्यंग कसा है
पण्डितो पण्डितं दृष्ट्वा मिथः घुर्घरायते । एक पण्डित दूसरे पण्डित को देखकर ईर्ष्या से घुरघुराता है ।
एक बार दो पण्डित एक साथ दक्षिणा की आशा से एक सेठ के यहाँ पहुँच गए । सेठ ने विद्वान् समझ कर उनकी बड़ी आवभगत की । एक पण्डित जब स्नानादि करने गए तो सेठ ने दूसरे से पूछा--"महाराज ! आपके साथी तो महान् विद्वान् मालूम होते हैं !" पण्डितजी में इतनी उदारता कहाँ कि वे दूसरे पण्डित की प्रशंसा सुन लें, विरोध न करें? वे मुह बिगाड़ कर बोले--"विद्वान् तो इसके पड़ोस में भी नहीं रहते। यह तो निरा बैल है।" सेठ चुप हो गए। जब उक्त पण्डित सन्ध्यादि करने बैठे तो पहले पण्डित से उन्होंने कहा-"आपके साथी तो बड़े विद्वान् नजर आए !" ईर्ष्यालु पण्डित अपने हृदय की गंदगी बिखेरते हुए बोले-"विद्वान-उद्वान कुछ नहीं है, कोरा गधा है।" भोजन के समय सेठ ने एक की थाली में घास और दूसरे की थाली में भुस परोस दिया। इसे देख दोनों पण्डित आगबबूला हो गए। बोले-“सेठजी ! हमारा यह अपमान ! इतनी धृष्टता !" सेठजी ने कहा"महाराज ! आप ही लोगों ने एक दूसरे को बैल और गधा बताया है। मैंने तो दोनों के लायक खुराक थाली में रखी है।" दोनों पण्डित अत्यन्त लज्जित हुए और अपना-सा मुंह लेकर चले गए।
हाँ, तो इस प्रकार के जो साक्षर होते हैं, उनमें एक दूसरे के प्रति सहिष्णुता,
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