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आनन्द प्रवचन : भाग ८
पण्डितों को क्या आप सच्चे पण्डित कह सकते हैं ? इसीलिए कबीर जी ने ऐसे पण्डितों को भारभूत एवं अनेक विरोधों में ग्रस्त बनाकर सच्चे पण्डित की पहचान बताई है
. "पोथी पढ़-पढ जग मुआ, पण्डित हुआ न कोय ।
ढाई अक्षर प्रेम के, पढे सो पण्डित होय ॥" केवल पुस्तकें पढ़ लेने मात्र से कोई धर्मनिष्ठ और विवेकी पण्डित नहीं बन जाता, जो विरोधों से दूर हो। ऐसे पोथीधारी पण्डित तो ऊपर बताए गए पण्डितों की तरह होते हैं, जो व्यावहारिक तथ्यों का अनुशीलन नहीं कर पाते । जिसके हृदय में समस्त प्राणियों के प्रति अविरोध का कारण निःस्वार्थ प्रेम नहीं, वह पढ़-लिखकर और बुद्धि से चतुर होने पर भी वास्तविक पण्डित नहीं । क्योंकि स्वार्थ, अहंकार, ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, असहिष्णुता, नुक्ताचीनी आदि दुर्गुण विरोध के कारण हैं, ये प्रेम के आग लगाने वाले हैं । ऐसे प्रेममयी पण्डित का प्रत्येक व्यवहार या कार्य अपने स्वार्थ, अपने विषय भोग के संकल्प से रहित होता है। इस प्रकार का अजातशत्रु पण्डित अहंकर्तृत्व, अहंत्व-ममत्व से दूर रह कर आत्मौपम्य की ज्ञान-रूपी अग्नि से कर्मों को जला डालता है। भगवद्गीता में ऐसे उच्चकोटि के पण्डित के लिए कहा गया है
“यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवजिताः ।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः ॥" जिसके समस्त समारम्भ (प्रवृत्तियाँ) काम के संकल्प से रहित हैं, इस कारण जिसने ज्ञानरूपी अनल से कर्मों को भस्म कर दिया है, उसे ज्ञानी पुरुष पण्डित कहते हैं।
प्रेम-साधना में तो विरोध का कोई काम नहीं है। विरोध तो वहाँ होता है, जहाँ व्यक्ति अपने-पराये का द्वन्द्व खड़ा करता है, अपने कार्य-कलापों के पीछे स्वार्थभावना छिपी रहती है। जहाँ सभी के प्रति आत्मीयता होती है. वात्सल्यभाव होता है, वहाँ आदि से अन्त तक माधुर्य और सौन्दर्य होता है, प्रेम के द्वारा सर्वांगीण कल्याण की साधना होती है। जब व्यक्ति के प्रेम की परिधि सारे विश्व तक पहुँच जाती है, उसका अपना 'स्व' कुछ शेष नहीं रहता वहाँ न तो अपना निजी कोई अर्थ रह जाता है, न निपट निजी काम-साधन रह जाता है, वह सबका और सब उसके बन जाते हैं। ऐसे परम पण्डित के लिए चाणक्यनीति में कहा है
"मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत् ।
आत्मवत्सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः ॥" —जो काम की प्रतीक परस्त्री को माता की तरह देखता है, अर्थ के प्रतीक परद्रव्य को ढेले की तरह देखता है तथा समस्त प्राणियों को आत्मतुल्य जानता है, वही वास्तव में पण्डित है ।
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