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आनन्द प्रवचन : भाग ८
हैं, वे सब पठनव्यसनी एवं मूर्ख हैं, वास्तविक पण्डित तो वही है, जो पाठन-पठनादि के अनुसार क्रिया (आचरण) करता है ।
दूसरों को कोरा उपदेश देने वाले एकांगी पण्डित, जो परोपकार, सहिष्णुता, सेवा आदि का उपदेश तो देते हैं पर समय आने पर उस उपदेश पर स्वयं नहीं चलते । “वदतो व्याघात' न्याय की तरह वे अपनी ही बात का स्वयं विरोध उपस्थित कर देते हैं।
एक बालक किसी तालाब में डूब रहा था। दैवयोग से उसे पढ़ाने वाले पण्डित उधर से गुजरे । पण्डितजी विद्यार्थियों को परोपकार का उपदेश यदा-कदा दिया करते थे । परन्तु आज बालक को डूबता देखा तो, सीढ़ियों पर खड़े-खड़े ही डाँटने लगे- "क्यों रे बदमाश ! तैरना नहीं आता था, तो पानी में क्यों कूदा ? तुझे मैंने कितनी ही बार मना किया था कि तालाब या नदी में नहीं कूदना चाहिए । मेरा कहा न मानने का अब मजा चख ! शैतान कहीं का।" यों पण्डितजी बेचारे उस डूबते हुए बालक को उपदेश झाड़े जा रहे थे; तभी एक किसान आ पहुँचा । वह बालक को डूबते देख एकदम पानी में कूदा और बालक को बाहर निकाल लाया । उपदेश बघारने वाले पण्डितजी से उसने कहा-"पण्डितजी ! उपदेश तो पाठशाला में दिये जाते हैं, इस समय तो इस बच्चे को डबने से बचा कर अपने परोपकार के उपदेश को अमल में लाने की जरूरत थी।" इसीलिए हितोपदेश में कहा गया है
परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम् ।
धर्मे स्वीयमनुष्ठानं कस्यचित्तु महात्मनः ॥ 'दूसरों को उपदेश देने में पाण्डित्य दिखाना सब मनुष्यों के लिए आसान है, लेकिन उपदेश के अनुरूप धर्म में अपना आचरण तो किसी विरले ही महान् आत्मा का होता है।'
____कई बार तो यह देखा गया है कि कई पण्डित अपने उपदेश से बिलकुल उलटा आचरण करते हैं। ऐसे लोग न तो अपना भला कर सकते हैं और न दूसरों का क्योंकि उनके उन थोथे उपदेशों का असर दूसरों पर कुछ नहीं पड़ता। ऐसे ही पण्डितों के लिए कहा गया हैं—“कुकृत्ये को न पण्डितः ?"
कुकर्म करने में कौन पण्डित नहीं है ? कुकृत्य करने के लिए किसी विद्यालय में पाण्डित्य सीखने की आवश्यकता नहीं रहती।
एक पण्डितजी थे। वे स्वयं बोतलवासिनी सुरादेवी की उपासना करते थे, परन्तु विद्यार्थियों को उपदेश दिया करते थे- ''शराब कभी मत पीना, यह बहुत बुरी चीज है।" एकदिन पण्डितजी पाठशाला में देर से आए। बालकों ने देर से आने का कारण पूछा तो उन्होंने झूठ-मूठ कोई कारण बता दिया, परन्तु पण्डितजी की आँखें बता रही थीं कि वे शराब पीकर आए हैं। बच्चों में आपस में काना-फूसी होने लगी तो उन्हें डन्डा उठाकर पीटने लगे। क्या ऐसे कुकृत्यगामी
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