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धर्म-नियन्त्रित अर्थ और काम ६६ पहुँचा दिया और एक चिन्तामणि रत्न देकर वह अदृश्य हो गया। जिनचन्द्र अदृश्यकरणी गोली के प्रभाव से अदृश्य होकर राजा के पास पहुंचा। वहां चारों स्त्रियाँ विश्वासपूर्वक यह बातचीत कर रही थीं कि 'हमारे धर्मिष्ठ पति हमें अवश्य मिलेंगे।' राजा ने जब यह बातचीत सुनी तो चारों को कुलांगना समझकर प्रातःकाल राजसभा में बुलाया। उनसे परिचय पूछा गया तो वे बोली नहीं। फिर उस दुष्ट बनिये से पूछा तो उसने कहा- "मैं परदेश से ऊंची कीमत में खरीदकर आपको भेंट देने के लिए इन्हें लाया हूँ।" परन्तु मन्त्री ने इसे असम्भव बताया। जिनचन्द्र भी रूप-परिवर्तन करके वहाँ उपस्थित था। उसने एक श्लोक कहा-जिसमें संकेत कर दिया था, अपने परिचय का । स्त्रियां उसे पहचान न सकीं। मन्त्री और राजा ने परिवर्तित रूप में बैठे जिनचन्द्र से श्लोक का रहस्य पूछा, तब उसने आद्योपान्त सारी घटना कह दी। राजा ने उस बनिये से जिनचन्द्र को ५ हजार रत्न वापस दिलाकर उसे देश निकाला दे दिया। चारों स्त्रियाँ जिनचन्द्र को सौंपी, उसने जब अपना असली रूप बनाया तो वे चारों अत्यन्त हर्षित हुईं। राजा के यहाँ कुछ दिन तक रहकर जिनचन्द्र चारों स्त्रियों को लेकर अपने नगर को लौटा। माता-पिता सब उसे देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए।
एक दिन चार ज्ञान के धारक श्री भुवनभानु मुनि नगर में पधारे। उनका धर्मोपदेश सुनकर जिनचन्द्र ने श्रावक धर्म अंगीकार किया। चिन्तामणि रत्न के प्रभाव से वह सब जीवों को अभयदान देता हुआ, दान-शील-तप भाव की आराधना करता हुआ गृहस्थ धर्म का पालन करता रहा । अन्तिम समय में समाधिपूर्वक मृत्यु प्राप्त कर बारहवें देवलोक के इन्द्र का सामानिक देव बना। क्रमशः मोक्षगामी बनेगा।
यह है अर्थ-कामयुक्त धर्माचरण का प्रभाव ! जिससे जिनचन्द्र संकट के समय भी धर्म-प्रभाव से बचकर सहीसलामत रह सका।
धर्ममूलक अर्थकामसेवी की धर्मनिष्ठा इसीलिए गौतमकुलक में कहा गया है--
'मिस्सा नरा तिग्नि वि आयरंति' धर्ममर्यादित अर्थ-काम का सेवन करने वाले (मिश्र) पुरुष इन तीनों का आचरण करते हैं।
ऐसा व्यक्ति धन भी कमाता है, सांसारिक सुखों के अनेक साधन भी जुटाता है, और विवाह करके कामसुखों का भी अनुभव करता है, सन्तान भी पैदा करता है, परन्तु यह सब धर्ममर्यादा के नियन्त्रण में ही करता है।
वह केवल संग्रह के लिए, धन को तिजोरी में बन्द करके रखने के लिए अर्थोपार्जन नहीं करता; न ही किसी का शोषण करके अन्याय-अनीति एवं अधर्म से
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