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आनन्द प्रवचन : भाग ८ :
उथलापन है। धैर्यवान मनुष्य के अन्तःकरण में ही सहिष्णुता, शान्ति, भविष्य की सुखद आशा और उदारता रहती है। वह कु-दिन के फेर में पड़कर भी घबराता नहीं, बल्कि उन दिनों को हंसते हुए टालने की चेष्टा करता रहता है । जिसे अपने पर पूर्ण भरोसा होता है, वही धैर्यवान और संहिष्णु होता है।
महादेव गोविन्द रानाडे के एक सहपाठी मित्र थे-कुण्टे । सन् १८८५ में जब लार्ड रिपन ने भारतवासियों को स्वायत्त शासन (नगरपालिका) का अधिकार दिया तो उसके चुनाव के समय दोनों में मतभेद हो गया। रानाडे चाहते थे अधिकाधिक संख्या में भारतीय सदस्य रखे जाएँ, और कुण्टे चाहते थे, अंग्रेज सदस्य रखना। एक दिन रानाडे ने कुण्टे को अंग्रेजपरस्त नीति के लिए फटकारा तो वे क्रुद्ध हो गए और खुलेआम अंग्रेज अफसरों के चुने जाने का प्रचार करने लगे, साथ ही रानाडे पर आक्षेप भी। रानाडे एक दिन इस झगड़े का अन्त करने के लिए स्वयं ही कुण्टे की सभा में चले गए। कुण्टे ने इन पर खूब आक्षेप किए, पर इसकी जरा भी परवाह किये बिना भाषण समाप्त होने पर स्वयं रानाडे उनके पास पहुंचे। कुण्टे ने नाराजगी से अपना मुह फेर लिया, पर वे उनके और भी पास चले गए और जबर्दस्ती बातें करने लगे। फिर उन्होंने कुण्टे से अपनी गाड़ी में बैठकर चलने को कहा तो कुण्टे ने इन्कार कर दिया। इसके बाद जब कुण्टे अपनी गाड़ी में जाकर बैठे तो ये भी उसी गाड़ी में जा बैठे और कहा–यदि आप मेरी गाड़ी में नहीं चल सकते तो मैं आपकी गाड़ी में चलूंगा। कहना न होगा कि रास्ते में दोनों में जो वार्तालाप हुआ, उससे कुण्टे महोदय ठिकाने आ गए और उन्होंने अंग्रेज अफसरों का पक्ष लेना छोड़ दिया। सुधार के लिए इतनी सहिष्णुता व धैर्य तो आवश्यक है ही जो रानाडे में था।
गुजराती भाषा में इस प्रकार की सहिष्णुता या धीरज को 'खंत' कहते हैं, जो शान्ति का ही अपभ्रंशीय रूप है। धीर या सहिष्णु को 'खंतीला' कहा जाता है । क्षमा का आदान-प्रदान
क्षान्ति का मुख्य एवं प्रचलित अर्थ, जिसमें इन सभी पूर्वोक्त अर्थों का समावेश हो जाता है, वह है क्षमा। जहाँ व्यक्ति स्वयं किसी दूसरे का कोई अपराध कर बैठता है, कोई सामाजिक मर्यादा भंग कर देता है या भूल कर बैठता है, वहाँ वह तत्सम्बद्ध व्यक्ति या व्यक्तियों से क्षमा माँगता है और जहाँ दूसरे व्यक्ति उसका अपराध कर बैठे हैं, उसकी कोई क्षति या हानि पहुंचाई है, वहाँ दूसरे व्यक्ति उससे क्षमायाचना करते हैं, तब वह उन्हें क्षमादान देता है । क्षमा की ये दोनों ही प्रक्रियाएँ समाज में प्रचलित हैं और इनसे दुःसाध्य समझी जाने वाली समस्याएं हल हो जाती हैं, कदाचित् देर हो सकती है, पर उसका चिरस्थायी प्रभाव व्यक्तियों के जीवन पर पड़ता है । क्षमा की महिमा निम्न पंक्तियों में देखिए--
क्षमा समान ज्येष्ठ श्रेष्ठ धर्म और कौन है ? भला सुमेरु से बड़ा महीध्र और कौन है ?॥१॥
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