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बुधजन होते क्षान्ति परायण
क्षमा बिना समग्र उग्र कर्मकाण्ड व्यर्थ हैं । अभीष्ट स्वर्ग- मोक्ष- सौख्यदा यही समर्थ है || २ || सदा प्रचण्ड क्रोध की दवाग्नि से जला मरे । मनुष्य क्या पिशाच है, जरा न जो क्षमा करे ॥३॥ क्षमा वही स्वमित्र के समान शत्रु को लखे । कभी किसी प्रकार की विरोधिता नहीं रखे ॥४॥ स्नेह-स्रोत- सा बहे ।
रहे ॥५॥
प्रशान्तचित्त से सदैव मुखारविन्द पै कृपामयी प्रसन्नता असह्य भर्त्सना सदा वध प्रहार भी अखण्ड श्रेय सर्वथा स्वशत्रु का सदा चहे ॥ ६ ॥
सहे ।
क्षमा की शक्ति का चमत्कार तो व्यक्ति को स्वतः उसका आचरण करने से ज्ञात हो जाता है ।
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महात्मा गाँधी जी ने यौवनावस्था में कई गलतियाँ बेसमझी से कर लीं, परन्तु जब उन्हें अपनी भूल मालूम हुई तो अपने पिताजी को विस्तृत पत्र लिखकर उनसे क्षमा मांगी, और भविष्य में वे अपराध न करने का विचार भी प्रकट किया । गाँधीजी के पिता ने अश्रुपूरित नयनों से अपने पुत्र को क्षमायाचना का प्रकार । दूसरा प्रकार है- क्षमाप्रदान महत्त्वपूर्ण है ।
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क्षमा प्रदान किया । यह हुआ का । वह इससे भी बढ़कर
महाभारत में द्रौपदी की क्षमाशीलता का वर्णन है । महाभारत युद्ध का अन्त हो रहा था, दुर्योधन भी अन्तिम सांस ले रहा था, उसी दौरान रात्रि के समय द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा पाण्डवों के खेमे में घुस गया और अपने पिता के वध
समझकर मौत के
का बदला लेने के लिए उसने पांडवों के पांचों बालकों को पाण्डव घाट उतार दिये । सारे पाण्डव शिविर में हा-हाकार मच गया । द्रौपदी विलाप कर रही थी। तभी भीम अश्वत्थामा को बाँधकर द्रौपदी के सामने लाए । द्रौपदी को अपने पुत्रघाती द्रोणपुत्र को मारने के लिए कहा गया । परन्तु द्रौपदी का मातृहृदय
ऐसा करने के लिए तैयार न हुआ । उसने सोचकर मारने से मेरे पुत्र तो जीवित होंगे नहीं । उलटे, इसकी होगा । अत: मैं इसे क्षमा करती हूँ ।"
कहा - " जाने दो इसको । इसे माता को भी मेरी तरह दुःख
• इस प्रकार पुत्र हत्यारे अश्वत्थामा को वीरांगना द्रौपदी ने क्षमा कर दिया। इस प्रकार का क्षमा प्रदान समस्त वैर-विरोधों को धो डालता है । जन्म-जन्म के पापों और अपराधों को धो डालने की शक्ति क्षमा में है । आप भी क्षमा के इन विविध रूपों को अपनाइए और अपने जीवन में आई हुई कलुषिता, कुत्सा और असहिष्णुता को समाप्त करिए ।
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