________________
धर्म-नियन्त्रित अर्थ और काम ८७ ऊर्ध्वबाहुविरोम्येष न च कश्चिच्छृणोति माम् ।
धर्मादर्थश्चकामश्च स धर्मः कि न सेव्यते ?" मैं भुजा उठाकर चिल्ला रहा हूँ, परन्तु मेरी बात कोई भी नहीं सुनता । धर्म से ही अर्थ और काम की प्राप्ति होती है। अतः उस शुद्ध धर्म का आचरण क्यों नहीं करते ?"
मिडास बहुत ही धनलोलुप था। उसके मन में यह भ्रान्ति दृढ़ हो गई कि सुख धर्म में नहीं, धन में रहता है। अतः उसने अपने इष्टदेव को प्रसन्न करके वरदान मांग लिया कि 'वह जिस वस्तु को छुए वही सोने में बदल जाए। वह खुश होकर घर आया। आते ही अपने मकान, पलंग और पोशाक को छकर सोने का बना लिया। मन ही मन खुश होने लगा कि अब तो चारों ओर सुख ही सुख है। कुछ देर बाद उसे भूख लगी। भोजन की थाली छुते ही सोने की बन गई और जो भी खाने की चीजें थीं, वे सब सोने की हो गई, पानी को छुआ तो वह भी सोने का हो गया। बडा परेशान हो गया वह । आखिर भख-प्यास को कहाँ तक बर्दाश्त करता । सोने की रोटी और सुनहरा पानी खाने-पीने के क्या काम आ सकता था ? आखिर परेशान होकर उसने फिर इष्टदेव से प्रार्थना की कि अपना वरदान वापस ले लो। मैं जिस स्थिति में था, उसी में सुखी था। मैं अब समझ गया कि कोरे धन से सुख नहीं मिल सकता।"
__हाँ तो मैं कह रहा था कि कोरे अर्थ से, या धर्मरहित अर्थ से सुखशान्ति का प्रश्न हल नहीं हो सकता। जो बेचैन है, अशान्त है पीड़ित है वह भला काम-सुख कैसे पा सकेगा? उसे घर में इन्द्रियों के सभी विषय सामग्री होते हुए भी वे काले साँप-से लगेंगे। परिस्थिति, संयोग या भाग्य से यदि किसी को धन-सम्पन्नता प्राप्त भी हो गई तो धर्म की कमाई न होने के कारण या उस अर्थ का धर्म-कार्य में व्यय न होने के कारण केवल कृपणता से धन पर सांप की तरह कुंडली मार कर बैठ जाने से क्या सुखशान्ति मिलेगी ? न तो वह उस धन से सुखशान्ति प्राप्त कर सकेगा, न ही उसका उपभोग कर सकेगा।
ऐसे धन से मानव-जीवन की सुरक्षा का स्वप्न भी कैसे पूरा होगा?
एक सेठ अत्यन्त कृपण था। उसने बहुत धन जोड़-जोड़ कर तिजोरी में इकट्ठा कर लिया था। न तो स्वयं उस धन का उपयोग कर सकता था, न वह किसी जरूरतमन्द को देता था, न किसी सेवाकार्य में व्यय करता था । बल्कि गरीबों को ऊँचे ब्याज पर पैसा देता और उसमें भी बेईमानी से एक शून्य बढ़ाकर वसूल करता था। इतना हृदयहीन कृपण सेठ एक दिन बड़ी तिजोरी में बैठा नोट गिन रहा था, धन देखकर वह प्रसन्न हो रहा था, परन्तु अचानक बाहर से किसी व्यक्ति को आते देख उसने तिजोरी का दरवाजा बंद कर लिया। संयोगवश वह तिजोरी बंद हो जाने के बाद बाहर से ही खुलती थी, अन्दर से नहीं। अतः सेठ तिजोरी खोल न
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org